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________________ ४४ / अमीरसधारा जान बूझकर संकटों को पैदा करना तो समझदारी नहीं है। 'इच्छानिरोधस्तपः' इच्छाओं पर ब्रेक लगाना तप है, अपने मन को काबू में करना संयम है, शरीर को शेषना, दबाना, न तो तप है, न संयम है, यह तो मात्र हठयोग है। बनारस-इलाहाबाद की तरफ साधुलोगों को मैंने देखा कि इन्द्रियों को वश में करने के विचित्र तरीके अपना रखे हैं। एक साधु ने कहामैंने जननेन्द्रिय में लोहे के कड़े की बाली पहना रखी है। जैसे स्त्रियाँ कान में कुंडल पहनती हैं, वैसे ही उसने भी पहना दिया था जननेन्द्रिय को कुंडल। अब आप सोचिये कि ब्रह्मचर्य को पालने का यह कैसा तरीका है ! यह तो जबरदस्ती है। यह संयम नहीं, दमन है। इसीलिए मैं तो साधना का सम्बन्ध भीतर से जोड़ता हूँ, बाहर से नहीं। बहुत से साधु लोग ऐसे भी होते हैं, जो कभी सोते ही नहीं, नींद ही नहीं लेते, सदा जगे रहते हैं। बहुत से साधक-साधु लोग कभी बैठते ही नहीं, लेटते भी नहीं, सदा खड़े ही रहते हैं । खाना भी खड़े-खड़े खाएंगे, शौच भी खड़े-खड़े करेंगे। यानी सब कुछ खड़े-खड़े। मेरी समझ से यह हठयोग है, बलात् आरोपण है। यह शरीर को ही आत्मा मान लेना है। बहुत से साधु लोग नग्न रहते हैं। यद्यपि आज के युग में नग्नता असभ्यता मानी जाती है, पर उन साधुओं का मानना है कि बिना नग्नता के मुक्ति-योग सध ही नहीं सकता। शायद यह कुछ हठयोग का ही प्रभाव है। अवधूत-परम्परा भी ऐसी ही है। यद्यपि शरीर को साधने में उनका कोई मुकाबला नहीं है। उनके लिए जल, शराब और पेशाब में कोई भेद नहीं है। नमक-चीनी में, मिट्टी-सोने में, रोटी-टट्टी में कोई फर्क नहीं है। पर इसमें हठयोग का प्रभाव ही अधिक दिखाई देता है। वैसे इनका तन्त्रों से ज्यादा सम्बन्ध रहता है। तो हठ योग है ऐसा जिसमें शरीर को मुख्यता दी जाती है। शरीर को साधा जाता है, शरीर को अपने काबू में किया जाता है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003964
Book TitleAmiras Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1998
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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