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अयोग हो योग का / ४५ विविध आसनों द्वारा, विविध मुद्राओं द्वारा। ध्यान को साधने के लिए यह जरूरी है कि शरीर भी सुगठित हो, बलवान् हो, सशक्त हो, स्वस्थ हो। कारण, स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है। मन की निर्मलता के लिए शरीर की निर्मलता, खून की निर्मलता आदि भी सहायक हैं। जिसके शरीर में बल है, उसके मन में भी बल होगा। बलवान् तन में बलवान् मन निवास करता है। इसलिए गहन ध्यान-साधना के लिए यह हमारा शरीर यदि संयमित, सुगठित हो, तो साधना में आलस्य या प्रमाद के जहरीले चूंट नहीं पीने पड़ते।
शरीर के भीतर एक और सूक्ष्म शरीर है जिसका नाम है वचन । विचार, कोन्सियस माइंड। विचारों को साधने के लिए मन्त्र-योग काम देता है। विचार वह स्थिति है, जब साधक दीखने में तो लगता है साध्य-स्थित, किन्तु भीतर में विचारों की आँधी उड़ती रहती है। हाथ में तो माला रहती है किन्तु मनवा कहीं और रहता है। कबीर का दोहा है
माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर ।
कर का मन का डारि दे, मन का मन का फेर ॥ हाथ में तो माला के मणिये हैं, पर मन में मणिया कहाँ है। सामायिक तो ले ली, पर विचारों में, मन में समता कहाँ आयी। प्रतिक्रमण के सूत्र तो मुँह से बोल दिये, पर क्या पापों से हटे, अन्तरात्मा से जुड़े । मन्दिर तो गये, पर क्या मन में भगवान बसे ? ___ मकान में चढ़ना शुरू किया। चालीसवीं मंजिल जाना है । लिफ्ट खराब है। पैदल ही सीढ़ियों को चढ़ना शुरू किया। रात दस बजे चढ़ना शुरू किया और आधी रात को डेढ बजे पैंतीसवीं मंजिल पर पहुंचे। साँस भर गया। एक ने दूसरे मित्र से पूछा, भैया ! अपने . इतने उँचे तो चढ़ आये हैं। पर क्या कमरे की चाबी लाये हो ? दूसरा
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