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मोहल्ले की बिजली गुल हो जाए और तब तुम्हें अपने ही मकान की छत पर जाने को कहा जाए तो तुम नहीं जा पाते। किसी और के घर की छत हो, तो डर लगना स्वाभाविक है, पर तुम्हारे अपने मकान में तुम्हें डर लग रहा है, क्योंकि वहाँ अंधकार है। अंधकार तो अंधकार है। वह तो बड़ा डरावना व भयावह होता है।
'जो डर गया सो मर गया।' डाकुओं के खेमे से आया यह बड़ा क्रान्तिकारी सत्र है। जब तक अंधकार है, तब तक डर है। जब तक डर है तब तक जिंदगी नहीं है। जब तक जिन्दगी नहीं है तब तक जीवंतता नहीं है और जब तक जीवंतता नहीं है तब तक जीवन के मूल्यों के प्रति आस्था नहीं है। अगर आस्था नहीं तो जीवंतता नहीं
और जीवंतता नहीं तो साहस नहीं। जीवन का मार्ग तो ऐसा है कि यहां बिना साहस व धैर्य के एक कदम भी चलना मुश्किल है।
यदि बचने की प्रवृत्ति रही तो कहीं नहीं पहुंच पाओगे। उल्लू को कहा जााः कि तुम्हें प्रकाश में ले चलते हैं तो वह कहेगा 'नहीं'। उसकी ही तरह जो आदमी प्रकाश से डर गया , वह उल्लू बनकर रह जाएगा। रात ही तब दिन होगा और दिन उसके लिए पूर्णतया रात होगी। एक उल्लू ही ऐसा प्राणी है, जो अंधेरे में देखता है। उसे अंधेरा बड़ा रास आता है। प्रकाश में उसकी आंखें चुंधियां जाती हैं। जीवन में जो अंधकार में रस लेता है, वह चोर, बेईमान व उल्लू की तरह है।
जहां प्रकाश की संभावना और स्वागत होता है, वहीं पर जीवन में इंसानियत साकार होती है। अगर अंधकार से प्रकाश की यात्रा करनी है तो बहुत प्रयास की आवश्यकता पड़ती है। अगर धर्म-स्थान तक आना हो तो भी कितनी व्यवस्थाएं करनी पड़ती हैं। एक घंटा दुकान विलंब से खोलनी पड़ती है, पूजा-पाठ जल्दी निपटाते हैं, घर-गृहस्थी के झमेले निपटाते हैं। तब कहीं व्यवस्थाएं जुटाकर यहां पहुंचते हैं।
___प्रकाश की यात्रा करनी पड़ती है, अंधकार से मुक्त होने के लिए, जीबन में परिपूर्णता के लिए। यह ठीक है कि कली बन गए, पर जब तक कली फूल नहीं बनती, तब तक उसका जीवन अपूर्ण कहलाता है। कली का होना ही पर्याप्त नहीं है, अगर कली फूल नहीं बन पाई
मानब हो महावीर /७३
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