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________________ तो यह उसका दुर्भाग्य है। कोई मनुष्य, मनुष्य नहीं बन पाया तो यह उसका दुर्भाग्य है, यह उसके पाप का उदय है। फूल का फूल के रूप में खिलना और खिले हुए फल के रूप में अपने जीवन को विश्राम देना, उसके जीवन में निर्वाण और महामोक्ष की बेला का घटित होना है। बीज कली से गुजरते हुए फूल बन गया तो उसका फूल के रूप में खिलना परमात्म-स्वरूप को प्राप्त करना है। शायद आप सोचें कि मैं पांच पैसे के फूल ला रहा हूं। नहीं! आप डाली से तोड़कर एक परिपूर्ण अस्तित्व, एक परमात्म रूप को ला रहे हैं। ____ कली के रूप में खिलकर गिरे, तब भी गिरे हुए कहलाओगे और फूल के रूप में खिलकर गिरे तो भी गिरे हुए कहलाओगे, लेकिन दोनों में अन्तर यह होता है कि कली तक आकर गिर गए तो जन्म-जन्मांतर की यात्रा करते रहोगे और खिले हुए फूल के रूप में गिरे तो वह पूर्ण विश्राम में लीन होने की अवस्था होगी। कली के रूप में गिरे तो यही लगेगा कि अभी पहुंच नहीं पाए। मरते वक्त तमन्नाएं शेष रह जाएंगी कि अभी कुछ होना बाकी है। यही तमन्ना पुनर्जन्म का सूत्र बनती है। फूल के रूप में खिल गए तो कोई तमन्ना शेष नहीं रह जाती। एक परम विश्राम, गहरी डुबकी और परम शांति होती है, फूल के रूप में खिलना। अभी तो कलियों को यह लग रहा है कि हम नहीं पहुंच पा रही हैं। कल एक सज्जन मुझसे वार्तालाप कर रहे थे। वे कह रहे थे 'हम जीवन से न तो अधिक प्रसन्न, न अधिक अप्रसन्न हैं, लेकिन भीतर में कुछ ऐसा जरूर है जिसके चलते हमारे मन में यह अभीप्सा, यह प्यास है कि हमें कुछ और होना है, कुछ और पाना है।' शायद तुम्हें अभी न लगे कि तुम फूल बनने वाले हो। यह अज्ञात की यात्रा होती है जिसमें खबर नहीं लगती। कली अगर सुबह तक फूल बन जाए तब तो कुछ और बात होती है। तब तो तुम्हें बोध हो जाता है। तुम दिन-ब-दिन वृद्ध होते जा रहे हो, पर तुम्हें इसका अहसास नहीं होता कि मैं वृद्ध हो रहा हूँ। अगर अंकुरण हो आया है, बीज में से पत्तियां निकल आई हैं, कांटे, उग आए हैं और कली भी लग गई है, क्या यह भी कम गौरव की बात है? अब तो पंखुड़ियां भी खिलने लगी हैं। अपने भीतर में उमड़ने वाले अहोभाव को, अंदर की खुमारी को पहचान सको तो पता प्रज्विलत हो प्रज्ञा-प्रदीप / ७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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