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________________ AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAmwww प्रज्वलित हो प्रज्ञा-प्रदीप उपनिषदों में एक महान् सूक्त, एक महान् मंत्र है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय ।' 'हे प्रभु! ले चलो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, असत् से सत् की ओर, मृत्यु से अमृतत्व की ओर'। अगर जीवन में असत्य है तो हे प्रभु, हमें सत्य की ओर ले चलो। अगर बेइमानी है तो हमें ईमान की ओर ले चलो, अंधकार है तो हमें प्रकाश की ओर ले चलो। असत्य चाहे बाहर का हो या भीतर का हो, असत्य, असत्य होता है। असत्य का अर्थ ही हुआ जैसे तुम हो, उसके विपरीत तुमने अपने आपको मान लिया है। अस्तित्व का, स्वयं का बोध सत्य है और अस्तित्व की पर में आसक्ति असत्य है। जब प्रकाश अपने स्वभाव से च्युत हो जाता है तो उस च्युति का नाम ही अंधकार है। जब अंधकार अपनी गहराइयों में छिपी हुई आभा को प्रकट कर लेता है, तो अंधकार में पनपने वाली आभा का नाम प्रकाश हो जाता है। _____ जीवन में कभी-कभी ऐसा होता है कि मनुष्य को बाहर का अंधकार घेर लेता है। अंधकार चाहे बाह्य हो अथवा आन्तरिक, बड़ा दुःखदायी होता है। यदि प्रकाश है तो लगता है कि कोई साथ है, जबकि अंधकार है तो बड़ा भय महसूस होता है। यदि मध्यरात्रि में प्रज्विलत हो प्रज्ञा-प्रदीप / ७२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003962
Book TitleManav ho Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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