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कई दिन बीत गए। एक दिन मुर्गा-मुर्गी का वार्तालाप उसके लिए गाज गिराने वाला था। मुर्गा कह रहा था कि दो दिन बाद अपनें मालिक की मौत होने वाली है। उस व्यक्ति के तो होश ही उड़ गए। वह भागा-भागा मूसा के पास गया और उनसे आग्रह करने लगा कि उसकी जान बचाने की जुगत बताएं।
. यह एक वास्तविकता है। मरना कोई नहीं चाहता। न तुम, न मैं। सभी जीना चाहते हैं। दूसरों की मृत्यु से फायदा उठाने वाले भी स्वयं की मृत्यु की कल्पना मात्र से सिहर उठते हैं। मृत्यु जीवन का अभिन्न सत्य है पर मनुष्य इसे कभी सहज स्वीकार नहीं कर पाया। सभी न केवल जीना चाहते हैं, बल्कि स्वस्थ, सुखी जीना चाहते हैं। लेकिन कैसी विडम्बना है कि इच्छा तो है स्वस्थ, सुखी जीवन की और उपाय सारे हो रहे हैं अस्वास्थ्य के, तनाव के, मृत्यु के।
पदार्थगत सुख-सुविधाओं के ढेर जुटाने की अंधी दौड़ में शामिल होने वाला मूसा का कोई भी शिष्य यह नहीं समझ पा रहा है कि मालिक रहेगा, तो ही माल बचाने का कोई अर्थ होगा। मालिक ही जा. रहा है तो माल बचाने का औचित्य ही नहीं है। कीमत तो मालिक की है, माल की नहीं। माल की कीमत भी मालिक के कारण ही है। युगों-युगों से हम माल को बचाने की फिक्र में मालिक की उपेक्षा करते आए हैं। ऐश-ओ-आराम के साधन तो बहुत जुटाए पर उनके अविवेकपूर्ण उपयोग से हमने अपना स्वास्थ्य खो दिया । ___.. जीवन की सार्थकता के लिए स्वास्थ्य पहला बिन्दु है। पहला सुख, पहला सौन्दर्य ! स्वास्थ्य-लाभ के अभाव में जीवन नरक जैसा दुःखद है, भार-रूप है। स्वास्थ्य बेहतर ही, तो जीवन न केवल स्वर्ग की विभूति बन जाता है, वरन् विकास के, हर तरह के पहलू हमारे हाथ होते हैं। व्यक्ति की स्वस्थता और प्रसन्नता जीवन के दो अनिवार्य पहलू हैं। बेहतर होगा हम अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग बनें। कष्ट और पीड़ा भोगकर अपने आपको मजबूर और कमजोर न बनाएं।
मनुष्य के पास अनमोल संपदा और संभावनाएं हैं। कोई व्यक्ति अपने को दीन-हीन समझता है तो यह उसकी कमजोरी है। गरीब से गरीब व्यक्ति के पास लाखों रुपये की संपदा है। मनुष्य का एक-एक अंग कीमती है। यदि कोई बेचने को तैयार हो तो अपनी एक आंख
मानव स्वयं एक मंदिर है | २२
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