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बीच चेतना के स्पंदन महसूस होने लग जाते हैं । मस्तिष्क की सूक्ष्म नाड़िया इससे सशक्त होती हैं, प्रज्ञा का जागरण होता है । यही कुण्डलिनी जागरण के लक्षण हैं।
जागरण के बहुत से लक्षण हो सकते हैं। अलग-अलग लोगों के अलग-अलग अनुभव | मुझे जैसा दिखाई दिया, वैसा मैंने बताया ।
कृपया अहोभाव समझाएं। - बाबूलाल जैन
जब प्रार्थना के सारे शब्द चुक जाते हैं, जुबान जिसे कह नहीं पाती है, अगर हम आंखों के आंसुओं से भी कहना चाहें और लगता है कि नहीं कह पाए तब ऐसी स्थिति में जो अन्तरभाव जगता है उस अन्तरभाव का नाम अहोभाव है। जैसे हम घूमते हुए गोम्मटेश श्रवणबेलगोला पहुंचे । अचानक हमने देखा बाहुबली की मूर्ति को और मुख से निकला - अरे वाह ! और 'वाह' को कहने के बाद आप नहीं कह सकते कि क्या विचार आ रहे हैं। एक ऐसी नीरवता, निर्विकल्पता भीतर छा जाती है कि उस 'वाह' के बाद जो भाव बनता है, उस भावदशा का नाम अहोभाव है । जहाँ सारे भाव शून्य हो जाते हैं, एकमात्र अन्तरभाव शेष रहता है वही अहोभाव है।
यह एक महान दशा है। इससे महान और कोई स्थिति नहीं होती जब व्यक्ति एक अहोमूर्ति बन जाता है, अहोभाव में डूब जाता है। मैं भी जव अपनी मस्ती में होता हूं नहीं कहता 'धर्मलाभ' या 'आशीर्वाद' तब सिर्फ इतना ही निकलता है 'अहोभाव', 'अहोकामना', अब तुम अपने हृदय से जैसा समझ सकते हो मेरे हृदय को वैसा समझो। यह तुम पर निर्भर है, अगर तुम्हारे भीतर भी उतना ही अहोभाव है तो तुम समझ जाओगे । तुम्हारे भीतर जो अहोभाव घटित हुआ है और भीतर वह क्षमता है, वह अन्तरदृष्टि है उस अहोभाव को समझने की तो शायद तुम्हारी वाणी को मैं न समझ पाऊं लेकिन तुम्हारे अहोभाव को जरूर समझ जाऊंगा, उसे अवश्य आत्मसात् कर जाऊंगा। वाणी से तुम कितना झुके यह व्यावहारिकता है, वह जो अन्तर की भाव- दशा है, अहोभाव है वही आपकी आत्म- दशा है । उसे शब्दों में नहीं, जी कर ही जाना जा सकता है । आप स्वयं समझ सकते हैं ।
अहोभाव से भरे प्रणाम, तुम जहाँ भी होगे, जहाँ भी करोगे, मुझ तक
चलें, सागर के पार / ६४
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