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________________ बल्कि नाभि के द्वारा होता है। इसलिए वच्चे के उत्पन्न होते ही मां की नाभि से जुड़ी हुई बच्चे की नाभि को तुरंत अलग कर दिया जाता है। गर्भकाल में सभी उसी नाभि के द्वारा भोजन, वायु और अन्य आवश्यक तत्त्व ग्रहण करते हैं। पैदा होने के वाद तो हमारी पंचेन्द्रियाँ काम करने लगती हैं और नाभि का संपर्क टूट जाता है। साधना के द्वारा उसी नाभिकमल को पुनः जाग्रत किया जाता है। नाभि कमल की तरह होती है और इसकी नली कह लें या डंडी कह लें, वह डंडी जहाँ पर इकट्ठी है जिससे वह कमल खिलता है वहीं कुण्डलिनी है। मनुष्य की काम-ऊर्जा भी वहीं है। वहीं उसका कुंड है। जव कुण्डलिनी का जागरण होता है या उस कुंड की शक्ति जाग्रत होती है, तव कोई तरल पदार्थ ऊपर नहीं चढ़ता जैसा कि योग शास्त्र कहते हैं। मेरे देखे ऐसा नहीं है। मेरे देखे तो जो तरल पदार्थ नीचे रहता है, ऊर्जा-कुंड के रूप में उसमें रहने वाली ऊर्जा, अदृश्य शक्ति-वल वह चेतना के विस्फोट के रूप में ऊपर की ओर उठता है। नीचे की चेतना ऊपर की ओर आरोहण करती है और जव ऊपर उठती है तव हमें नाभि के आसपास अजीव से स्पंदन, अद्भुत अनुभूतियाँ होती हैं और हृदय में चेतना का सघन रूप दिखाई देता है। ऐसा लगता है जैसे चेतना स्पंदित हो रही है। हम जितने ज्यादा ऊपर बढ़ते चले जाएंगे, हम स्पंदित होते चले जाएंगे। स्पन्दन और शक्ति का स्रोत अनुभव करते जाएंगे। सामान्यतः साधक को नाभि-कमल/कुण्डलिनी/स्वाधिष्ठान पर कुछ स्पंदन महसूस हो जाते हैं लेकिन वीच के स्थानों पर स्पंदन नहीं होते, सीधे मस्तिष्क में स्पंदन होते हैं। यह शरीर का विज्ञान है कि मस्तिष्क का सीधा संबंध रीढ़ ही हड्डी से जुड़ता हुआ जहाँ रीढ़ की हड्डी खत्म होती है वहाँ ऊर्जा कुण्ड से मिल जाता है। कुण्डलिनी का भी यही स्थान है और काम-ऊर्जा का भी। काम-ऊर्जा, ऊर्जा-कुंड का एक अंग है। इसलिए जव भी काम-वासना के विचार उठते हैं हमारे शरीर के अधोभाग में स्पंदन शुरू हो जाते हैं। उत्तेजना जग जाती है। मैं यह इसलिए स्पष्ट कह रहा हूं कि हमारे मन में कोई भ्रान्ति न रह जाए, विल्कुल वही जैसा जो मैंने जाना। हमारे नीचे के ऊर्जा-कुंड में जव स्पंदन होता है, संभव है बीच के स्थानों में कोई स्पंदन न हो और हम सीधे रीढ़ की हड्डी के माध्यम से, सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम से मस्तिष्क में पहुंच जाते हैं और दोनों भौंहों के चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/६३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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