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________________ हूं, मैं तो यहाँ ध्यान-कक्ष में हूं। जैसे ही दुकान का खयाल आया, गुल्लक उठी, बैंक का दृश्य तो पूरा उभर भी नहीं पाएगा कि विचार लटक जाएंगे। वे गिर गए। फिर जो होगा वह ध्यान होगा। तब आप ध्यान में, अपने-आप में जी रहे हैं। आप विचार नहीं हैं क्योंकि आपके विचारे विचार नहीं आते। आप कोई और हैं, और जो अलग कोई और हो जाता है, विचार शान्त हो जाते हैं। आप दृष्टा होकर चित्त के यातायात को देखिए। द्रष्टा-भाव ही वास्तव में ध्यान की आत्मा है। मौन से लाभ-हानि? - राजेश शाह मेरे प्रभु, आपने विषय ऐसा उठाया है, जिसे मौन से ही समझाया जा सकता है। मौन से ही मौन को समझाया जा सकता है। अगर इसके लाभ-हानि देखने हैं तो जब मैं मौन में होता हूं, मेरे पास आकर सिर्फ आधा घंटा बैठ जाइए। कुछ भी मत करिए, सिर्फ देखिए कि वह मौन आपके भीतर क्या घटित करता है। तब मेरे पास बैठना ही आपके लिए ऐसा हो जाएगा कि आप अनचाहे ही शान्ति के झरने में नहा रहे हैं, अनचाहे ही आनन्द के निर्झर में डुबकी लगा रहे हैं। कुछ ऐसा होने लगेगा, जो सिर्फ मौन से ही सम्भावित है। मैं चाहता हूं आप प्रतिदिन मौन अवश्य रखें। यहाँ तक कि जब आप ध्यान करने के लिए बैठते हैं तो उसके आधा घंटा पहले मौन ले लें और ध्यान करने के बाद भी कम-से-कम आधा घंटा मौन में रहें, ताकि ध्यान की तरंग आपके अन्दर बनी रहे। ध्यान की तन्मयता की तरंग को पैदा करने के लिए उसे बनाये रखने के लिए मौन अचूक है। अभी तो आपाधापी में ध्यान के लिए चले आते हैं। दौड़ते-भागते हुए दुकान से, घर से आते हैं और ध्यान किया कि पुनः उसी भाग-दौड़ में शामिल हो जाते हैं। नतीजा यह होगा ध्यान में विचारों-विकल्पों की उठापटक जारी रहेगी। मौन ले लीजिए, ध्यान में प्रवेश करने के लिए, ध्यान की तरंग बनाए रखने के लिए। मौन लीजिए स्वयं में जीने कि लिए। लोग मौन ले लेते हैं। फिर देखिए उनका ‘हां-हूं, हूं-हा' का वार्तालाप (हंसी)। मौन ले लेते हैं, तब भी वही प्रवृत्ति चालू रहती है। अगर बहुत आवश्यक हो या तुम्हारे बिना काम चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/८७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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