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________________ भाषा में प्रत्याहार है । लौट आना, वापस हो जाना, अपनी इंद्रियों का अपने वश में हो जाने का नाम प्रत्याहार है । जव हमारा ध्यान, संकल्प अपने ही ध्येय को ग्रहण कर लेता है, स्वीकार कर लेता है इस ग्रहण करने के भाव को धारणा कहते हैं। तीन चीजें हैं- ध्याता, ध्यान और ध्येय । जव हमारा ध्यान चित्त से जुड़ता है और अपने आप में लौट आता है, अपने ध्येय को स्वीकार कर लेता है, संकल्पित हो जाता है तो वह चीज धारणा होती है । ध्याता और ध्येय के सम्बन्ध का नाम ध्यान है । अर्थात् धारणा ध्येय को स्वीकार करना है और ध्यान ध्येय के साथ एकरूप, एकरस, एकसम हो जाना है । जहाँ ध्याता, ध्यान और ध्येय के बीच एकरूपता घटित हो जाती है, वहीं समाधि होती है। जब तक ध्यान, ध्यान रहता है तब तक ध्याता और ध्येय के बीच सम्बन्ध तो होता है लेकिन दोनों एक नहीं होते । जहाँ ध्याता और ध्येय दोनों एकरूप हो जाते हैं वहीं समाधि घटित होती है । ऐसी समाधि घटित होती है कि पंतजलि कहते हैं उसका परिणाम होता है प्रज्ञा । एकाग्रता का अर्थ है अपने ही ध्येय के प्रति संकल्पित, एकनिष्ठ हो जाना । एकाग्रता मन की वह स्थिति है जहाँ मन ध्येय में विलीन, विसर्जित, स्थिर चित्त हो जाता है । एकाग्रता प्रयास से करो, तो रह-रह कर खंडित हो जाती है । तन्मयता का सहज परिणाम है एकाग्रता । तन्मयता हो, तो ध्यान, धारणा और एकाग्रता - तीनों बिना किसी प्रयास के घटित हो जाते हैं । तन्मयता मस्ती है, रस है, उत्सव है । करते-कराते, जुड़ते-जुड़ाते, होते-होते अपने आप हो जाती है तन्मयता । तन्मय होकर ध्यान करो, तो ध्यान तुम्हारे लिए अमृत है, अनुभूति जन्य है, भीतर के शून्य में उतरने में सहकारी है। ध्यान में तन्मयता हो, तो ध्यान भीतर के विज्ञान से रू-ब-रू करवाता है, चेतना का सहज विकास करवाता है । भीतर के सोये स्वामी को जगाता है । हमारी वास्तविक क्षमताओं को उजागर करता है । पहले गुफाओं में रहने वाले सन्त-महात्मा लोग ध्यान-योग किया करते थे, जबकि आप इसे सार्वजनीन बनाना चाहते हैं? जो समझते हैं कि ध्यान केवल ऋषियों-मुनियों और गुफावासियों के लिए है तो उनकी समझ मोटी है और दृष्टि एकान्त-संकीर्ण है । Jain Education International चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ / ६६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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