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________________ उन्हें ही बचाकर रखना है, उनका ही परिपोषण करना है तो बहुत से केन्द्र हैं वहाँ तक पहुंच सकते हैं। गुरु के पास तर्क नहीं होता। गुरु के पास ज्ञान सम्यक् होता है। जब कोई तर्कजाल में जाता है, तो वह सम्यक् ज्ञान से दूर होता है। जब कोई तर्क करता है तब वह अपनी सोची हुई बात को, अपनी मान्यता को दूसरे पर आरोपित करना चाहता है। अगर उसके मन के, तर्क के अनुसार बात होगी तब वह खुश हो जाएगा अन्यथा अधिक वितर्क में आएगा, जल्प हो जाएगा, वितण्डावाद खड़ा करेगा। ज्ञान तर्क में नहीं, परमात्मा तर्क में नहीं। परमात्मा शब्द में नहीं, शब्द के पीछे छिपे भाव में है, अर्थ में है। वही सार्थकता है। वह अदृश्य के अर्थ में है। बीज वृक्ष हो सकता है अगर चाहे तो। इन्सान भी भगवान हो सकता है बशर्ते वह भगवान होना चाहे। लेकिन वह बहुत भयभीत होता है। सोचता है, क्या जरूरत है भगवान बनने की। वह कभी कल्पना भी नहीं कर सकता कि मैं भी महावीर हो सकता हूं। मैं भी कृष्ण, राम और रहीम हो सकता हूँ। अगर किसी को कहो कि तुम महावीर हो सकते हो तो वह कहेगा असम्भव है, महावीर होना बहुत कठिन काम है। बस महावीर ही महावीर हो गए। तब तुम महावीर नहीं बन पाओगे। नतीजतन तुम महावीर के पांवों में जाकर झुक जाओगे, प्रणाम कर लोगे, नमस्कार करोगे लेकिन महावीर नहीं हो पाओगे। महावीर कभी नहीं कहते कि तुम सब मेरे भक्त हो जाओ। उन्होंने यही चाहा कि सब महावीर हो जाएं। वे नहीं कहते कि तुम मुझे भगवान के रूप में देखो, वे कहते हैं तुम स्वयं में ही भगवान देखो। सोऽहं । तुम्हारे भीतर वही भगवान् है, यह सदा बोध रखो। महावीर का भक्त होने से कोई महावीर नहीं हो सकता लेकिन महावीर होने से महावीर हो सकता है। राम नाम की चदरिया ओढ़ने से राम नहीं हुआ जाता, राम होने से ही राम हो सकता है। 'बुद्धं शरणं गच्छामि' का स्मरण करने से कोई व्यक्ति बुद्ध नहीं होता। जब तक सम्बोधि हासिल नहीं होगी कोई भी बुद्धत्व के द्वार पर दस्तक नहीं दे सकता। अगर किसी बीज को वृक्ष होना है तो उसे पाने का प्रयत्न करना होगा। जमीन में धंसना होगा। लोगों की नजरों में बेवकूफी और पागलपन का कारण हुआ भी कहलाओगे। जब-जब इस दुनिया में किसी को सत्य और सम्यक्त्व उपलब्ध हुआ, आत्मदृष्टि और आत्म-ज्योति प्राप्त हुई, दुनिया उसे सदा पागल ही कहती रही। लोग तुम्हें ही पागल नहीं कहेंगे, उन्होंने महावीर को भी पागल कहा इसलिए शिकारी कुत्ते छोड़े। उन्हें बेवकूफ कहा इसलिए कानों में कीलें ठोंकीं। क्राइस्ट को क्रॉस पर लटका दिया गया। चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/५५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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