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________________ मस्तिष्क से, जीवन का निर्माण सदा नाभि से होता है । नाभि तुम्हारा जीवन है, उत्स है, बीज से फूटने वाला पहला अंकुर है । जब हम ध्यान करते हुए नाभि तक, नाभि-कमल तक ध्यान केन्द्रित करते हैं तो इसलिए क्योंकि वहाँ से हमारे जीवन का निर्माण हुआ है और जो कमल आज सोया हुआ है वह कमल पुनः जाग्रत हो जाए। अगर नाभि-चक्र जागता है तो शरीर के सभी तंत्र सक्रिय और क्रियान्वित हो जाते हैं । नाभि का जगना जीवन का जगना है। इसीलिए नाभि का जगना इतना महत्व रखता है । नाभि और मस्तिष्क के मध्य एक अन्य महत्वपूर्ण केन्द्र हमारा हृदय है । नाभि के नीचे योग की भाषा में जिसे स्वाधिष्ठान चक्र कहते हैं सरल भाषा में उसे नीचे का ऊर्जाचक्र कह सकते हैं, ध्यान के द्वारा उसे सक्रिय किया जाता है और प्रयास किया जाता है कि वह जगकर हमारे हृदय का स्पर्श कर जाए। यदि नीचे का स्वाधिष्ठान चक्र ऊपर तक संवेदनशील हो जाए कंठ (विशुद्धि चक्र / कंठ मणि) तक स्पर्श कर जाए तो यह हमारी जीवन ऊर्जा का, हमारे स्वाधिष्ठान-उदात्तीकरण होगा। -चक्र का मनोविज्ञान जिसे उदात्तीकरण कहता है, योग की भाषा में वह ऊर्ध्वारोहण है। नीचे की चेतना का ऊपर की ओर ऊर्ध्वारोहण हो जाना और ऊपर के तनाव का नीचे की ओर गिर जाना, इसी का नाम जीवन में योग - विशुद्धि है । यदि आपके मस्तिष्क में तनाव है, बोझ है, दो मिनिट के लिए आराम से बैठ जाइए और अपने मस्तिष्क को नीचे हृदय की ओर झुका दीजिए, लगेगा तनाव अपने आप थम रहा है। जो तूफान दिमाग में उठ रहा था वह मन्द पड़ रहा है। यह सहज रूप से होगा, बिल्कुल सहजता से । जब भी मनुष्य अपने मस्तिष्क को छोड़कर हृदय में प्रविष्ट होता है, उसका तनाव समाप्त हो जाता है । हमारे जीवन का परमात्मा भी मस्तिष्क में नहीं, हृदय में रहता है। श्रद्धा, प्रेम, करुणा सभी का निवास-स्थान हृदय है । मनुष्य कभी भी क्रोध हृदय से नहीं करता लेकिन प्रेम ! प्रेम तो बिना हृदय के सम्भव ही नहीं है । क्रोध, राग, द्वेष में सदा मन सक्रिय होता है लेकिन प्रेम, अहिंसा, करुणा, भाईचारे के मार्ग पर हृदय सक्रिय होता है । मनुष्य का हृदय जितना अधिक सक्रिय होगा वह उतना ही पवित्र और धर्मात्मा होगा और मन की अधिक सक्रियता में वह तूफानी बनेगा । क्रोध किया मन ने काम किया। प्रेम किया, हृदय भर आया । जो दिल चेतना का ऊर्ध्वारोहण / ३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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