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________________ बहुत अधिक मत कसो और न ही बहुत अधिक ढीला छोड़ो अन्यथा तुम बाहर से बड़े ज्ञानी हो जाओ या बड़े स्वाध्यायी बन जाओ या बड़े आध्यात्मिक कहला लोगे लेकिन प्राप्त कुछ न कर पाओगे । अन्तर्जगत् पर रूपान्तर की मुहर नहीं होगी । चेतना के सृजन के नाम पर शून्य रहोगे । तानपूरा प्रेरक है कि हमारे जीवन के तार भी सध जाएं। मैं कहना चाहता हूँ कि अपने तानपूरे के तारों को न तो अधिक कसो और न अधिक ढीला छोड़ो । अगर अधिक कसोगे तो तनावग्रस्त हो जाओगे । जो मस्तिष्क में जीते हैं, वे बड़े तनाव में जीते हैं क्योंकि उनके तानपूरे के तार बहुत कसे हुए हैं । इतने ज्यादा कस गए हैं कि उनके दिमाग में सिवा तनाव के और कुछ है ही नहीं । इतने तनाव में, घनघोर तनाव में जीते हैं कि रात को नींद भी नहीं आती। अगर रात को नींद नहीं आती हो तो दो मिनिट के लिए अपने दिमाग से तनाव को भुला दीजिए, यह स्वीकार करते हुए कि मैं शून्य में डूब रहा हूँ । शून्य को स्वीकार करते हुए दिमाग ढीला छोड़िए । आप पाएंगे कि आप तनावमुक्त हो रहे हैं और नींद आ जाएगी। दो मिनिट में ही नींद आ जाएगी। एक घंटा करवटें नहीं बदलनी पड़ेंगी। जैसे ही दिमाग से तनाव दो मिनिट के लिए कम हुआ, तत्काल प्रसन्नता उभरी; नींद लेना चाहते हो तो नींद आ जाएगी या किसी कार्य को करना चाहो तो वह कार्य सहजता से हो जाएगा । मनुष्य मस्तिष्क में जीता है। अधिक मस्तिष्क में जीना, विकल्पों की उधेड़बुन में खोये रहना ही तनाव का कारण है । हमारे तनाव का सम्बन्ध अपने ही मनोमस्तिष्क के साथ है । दिन-रात मन और मस्तिष्क का उमड़ना-घुमड़ना ही व्यक्ति के लिए तनाव है। मनुष्य के जीवन का मूल आधारभूत तत्त्व मस्तिष्क नहीं है । अगर व्यक्ति का मस्तिष्क उसके हृदय में तिरोहित / विसर्जित हो जाए या संयुक्त/संस्पर्शित हो जाए, तो दिमाग का आधा तनाव तत्काल समाप्त हो जाए । अभी तक यही समझा जाता रहा है और मनोविज्ञान भी यही समझता है कि मनुष्य का मूलभूत आधार-तत्त्व मस्तिष्क है, जबकि ऐसा नहीं है । जीवन का निर्माण कभी भी मस्तिष्क से नहीं होता अपितु नाभि से होता है । गर्भकाल में पहले मस्तिष्क पैदा नहीं होता, नाभि से जीवन का निर्माण होता है । नाभि केन्द्र है । जब बच्चा गर्भकाल में रहता है तब वह भोजन मुंह से नहीं, नाभि से करता है। इसलिए बच्चे के पैदा होते ही मां से जुड़ा हुआ नाभि का सम्बन्ध काट दिया जाता है । और सम्बन्ध के कटते ही भोजन प्रारम्भ होता है मुंह से । यह जीवन की कितनी बड़ी सच्चाई है कि जीवन का निर्माण न तो मुंह से होता है और न Jain Education International चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ / ३५ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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