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प्रश्न समाधान
सांसारिक जीवन में क्या पूर्णतया चित्तशुद्धि सम्भव है? चित्तशुद्धि का सम्बन्ध न संसार से है न संन्यास से। यह हमारी दोहरी नीति है कि हमने जीवन को संसार और संन्यास के दो टुकड़ों में बांट दिया है। मेरे देखे तो हम न जाने कितनी बार संन्यासी या गृहस्थ हो जाते हैं और जिन्हें हम साध-संत-संन्यासी मानते हैं वे भी अपने इस वेष में संसारी हो जाते हैं। जीवन का सम्बन्ध वस्तु से नहीं है, खूटों को बदल लेने से भी नहीं है। जीवन का सम्बन्ध चित्त को शुद्ध करने से है। अगर संसार में रहते हुए चित्त निर्मल करके जीते हो तो संसार भी संन्यास है और संन्यासी होकर भी विकृत चित्त से जीते हो तो संन्यास भी संसार
है।
भीड़ में रहकर भी एकान्त का आनन्द आ जाए तो भीड़ भी गुफा है, अन्यथा हिमालय में भी चले जाओगे तो वहाँ भी विचारों की आंधी, संसार के रागात्मक सम्बन्धों की आँधी वहाँ भी नहीं छोड़ेगी। इसलिए ऐसा मत सोचिए कि चित्तशुद्धि का सम्बन्ध संन्यास या संसार के साथ है।
मनुष्य का अंतरंग/२६
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