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________________ होगा। हमें अपना जीवन बहुत महान लगेगा, अन्यथा जीवन बड़ा भारभूत लगता मन का कार्य है चित्त के निर्देशों का पालन करना, उनका क्रियान्वयन करना। मन तो संदेशवाहक है, दूत है। मन तो नौकर की तरह है। चित्त उसे जो आदेश देता है वह पालन करता है। मन तो बड़ा बेचारा है, गरीब है। मन से हम जैसा करवाना चाहें वह कर सकता है बशर्ते हमारे चित्त की शुद्धि हो जाए। हमारे चित्त के संकल्प बहुत गहरे और उन्नत हो जाएं तो हम मन से जैसा चाहें वैसा करवा सकते हैं। तब अगर चित्त आदेश दे 'मन की झील तुम शांत हो जाओ' तो यह मन की झील पूरी तरह शांत हो जाएगी। यह सत्य और अनुभूत तथ्य है। मैंने सुना है, मालिक के यहाँ एक नौकर काम करता था। एक बार मालिक ने नौकर के सामने बैंगन के भुर्ते की बहुत तारीफ की कि यह बड़ा स्वास्थ्यवर्धक है। भला नौकर कैसे पीछे रहता उसने भी मालिक के सुर में सुर मिलाया - 'आप ठीक कहते हैं मालिक, बैंगन का भुर्ता बड़ा गुणकारी होता है, जल्दी पचता है, स्वास्थ्य बनाता है, दिमाग मजबूत करता है।' मालिक ने सोचा जब नौकर भी इतनी तारीफ कर रहा है तो उसने खाना प्रारम्भ कर दिया। पता नहीं एक दिन क्या हुआ जब मालिक सोने लगा तो उसे बैंगन याद आ गए। उसने अपने नौकर से कहा - 'ये बैंगन भी क्या वाहियात चीज है। बीमार कर देता है, पेट बढ़ाता है, अजीर्ण कर देता है, पचता नहीं है। बहुत खराब है।' नौकर ने कहा - ‘मालिक आप बिल्कुल ठीक कहते हैं। बैंगन बहुत गलत चीज है। पाचनशक्ति खराब करता है। बैंगन का भुर्ता बिल्कुल नहीं खाना चाहिए।' मालिक को याद आया, एक दिन इसी नौकर ने बैंगन की इतनी तारीफ की थी और आज जब मैंने कह दिया कि बैंगन अच्छे नहीं होते तो आज यह भी भुर्ते को खराब बता रहा है। उसने नौकर से कहा, 'तुमने बैंगन की निंदा की, ठीक है। लेकिन मैं पूछना चाहता हूँ उस दिन तुम तारीफ कर रहे थे और आज निंदा कर रहे हो, क्यों?' नौकर तपाक से बोला, 'उस दिन भी प्रशंसा मैंने नहीं की थी और आज भी निंदा नहीं कर रहा हूँ। तब भी प्रशंसा आप ही ने करवाई थी और आज निंदा भी आप ही करवा रहे हैं। मैं आपका नौकर हूँ, बैंगन के भुर्ते का नहीं। मेरा काम तो मालिक की आज्ञा मानना है।' नौकर, नौकर है और मालिक मालिक । नौकर मालिक के लिए है। हमारे चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/२३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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