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________________ उड़ना चाहता है और आकाश में उड़ने वाला सोचता है पिंजरे में कितना आनन्द है, बैठे-बैठे ही सब कुछ मिल जाता है और मुझे दिन भर कितना श्रम करना पड़ता है। इस मन में इतने विरोधी भाव क्यों पैदा होते हैं? जब घर में होते हैं तो मन मंदिर जाने को कहता है और जैसे ही मंदिर पहँचते हैं मन कहता है अब लौट चलो। हमारा मन ही मंदिर और मधुशाला जाने की प्रेरणा देता है। हमारे मन में प्रायः अनेकों प्रकार के विरोधी विचार दिन-रात उठते रहते हैं। चौबीस घंटे में हम गिनती के कार्य ही कर पाते हैं लेकिन मन के भीतर तो हजारों घटनाएं घट जाती हैं। आखिर ऐसा क्यों? हमारे सामने आज आतंक या शस्त्रास्त्रों की समस्या नहीं है। आज का युग तो मानसिक समस्याओं का युग है। ‘मन' ही समस्या है और इस ‘मन' से मुक्त हो जाना ही समस्या का समाधान है। किन्तु हर व्यक्ति अपने मन से मुक्त नहीं हो सकता। मैं आपको मन से मुक्त होने की शिक्षा नहीं दे रहा हूँ बल्कि अपना मन जो विकृत मार्ग पर जा रहा है उस विकृत मार्ग से संस्कारित मार्ग पर लाने की कला सिखाना चाहता हूँ। मन से मुक्त हो जाना हर इन्सान के लिए स्वाभाविक नहीं है लेकिन मन को सम्यक दिशा प्रदान कर देना, यह आम आदमी के लिए सम्भव है। मन जो हर वक्त दौड़ता है, यदि एकाग्र और तन्मय हो जाए तो इसकी प्रचण्ड ऊर्जा हमारे आत्म-साक्षात्कार और परमात्म-अनुभूति में सबसे बड़ी सहायक हो सकती है। हम अपने मन के स्वभाव को समझें। इसके व्यक्तित्व, कर्तृत्व और अस्तित्व को समझने की चेष्टा करें। जब हम भीतर झांकते हैं तो सबसे पहले विचारों की अनुभूति होती है। दिमाग में विचार आते हैं लेकिन ये विचार आते कहाँ से हैं? जहाँ से विचार आते हैं उसी का नाम 'मन' है। मन तो सिर्फ उपकरण है, एक यंत्र है। वह अपने हिसाब से कुछ नहीं करता। मन के नागलोक का स्वामी कोई और है। अगर मन में कुछ अच्छे या बुरे विचार आते हैं तो इसमें मन का दोष नहीं है। इसलिए मन को सताने, दबाने का प्रयास मत करना। यह मन तो निर्दोष है। इस मन का एक स्वामी कोई और है जहाँ से सारे स्फुलिंग और चिंगारियाँ आती हैं और वे बाहरी दुनिया में हजारों तरह की घटनाएं, तहस-नहस मचाती हैं। और यह स्वामी है –'चित्त'। ____मन अचेतन होता है और चित्त सचेतन होता है। मन ज्ञायक होता है और चित्त ज्ञाता होता है। चित्त को हमारी ही चेतना से कुछ ऊर्जा मिलती है मनुष्य का अंतरंग/२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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