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________________ धर्म उनके लिए है जिनके दिलों में आत्म-ज्योति के लिए कोई अन्तर-प्यास है, कोई सांची लगन है। धर्म प्रत्येक के लिए नहीं है, वह तो पिपासुओं के लिए है, जिज्ञासुओं के लिए है। धर्म का संबंध धन से, कुल से नहीं बल्कि व्यक्ति की ललक, प्यास, रुचि और दृष्टि से है। जिसकी दृष्टि खुल गई वह सभी जगह से अच्छी बातें ही लेगा अन्यथा धारावाहिक रामायण देखकर भी तीर चलाना ही सीखोगे। महाभारत से द्यूत-क्रीड़ा में ही महारथ हासिल करोगे। यह हमारी दृष्टि पर है कि हम किस तरह जी जाते हैं। अगर हमारे भीतर वह प्रभुता है, वह चैतन्यदृष्टि है तो शायद कुछ उपलब्ध कर सकते हैं, जीवन को शिखर तक जी सकते है। मैं तो अपनी ओर से यही निवेदन करना चाहूंगा कि हम लोगों को महावीर होना है, बुद्ध होना है, राम होना है। हम अपनी ऊंचाइयों में जो हो सकते हैं, वह होना है। महावीर और बुद्ध का घर-घर पुनर्संस्करण निकालना है। दुनिया में दो तरह के महापुरुष होते हैं-एक तो वे जो दुनिया को अच्छी-अच्छी बातें देते हैं, अच्छे सिद्धान्त और अच्छे विचार देते हैं और दूसरे वे, जो दुनिया को जीवन देते हैं, जीने की कला देते हैं। इस मृतप्रायः, दिग्भ्रम दुनिया को जीना सिखाते हैं, जीने का वरदान देते हैं। मेरे पास कोई सिद्धान्त या शिक्षा नहीं है, इसलिए जब मैं बोलता हूं तो यह मत समझिए कि कोई उपदेशक हूं। मुझे उपदेश देने की प्रवृत्ति पसंद नहीं है। मैं चाहता हूं सब अपने आप में जिएं। कोई दूसरा भी जीवन के महोत्सव में शामिल होना चाहता है तो उसे भी सम्मिलित कर लो ताकि वह हमारी तरह जी सके। प्रेम, आनन्द और जीवन-मूल्यों को आत्मसात् कर जी सके, अपनी अन्तश्चेतना को जागरूक कर अभिभूत अहोभाव से जी सके । शरीर भले ही नश्वर हो, पर अमर जीवन प्राप्त कर ले । मन भले ही चंचल स्वभावी हो, पर अतिमानस के प्रकाश से परिपूर्ण हो जाये । मैं तो सिर्फ 'जीवन' देना चाहता हूं। जीवन, एक तो वह है जो आप माता-पिता से प्राप्त करते हैं दूसरा वह जिसका निर्माण आपको स्वयं करना है। दीक्षा का अर्थ ही यही है कि व्यक्ति का जीवन बदला, उसके हृदय में जीवन के प्रति सम्मान का भाव जगा, जीवन में भगवान को निहारने का भाव जगा, जीवन को रूपान्तरित करने की अभीप्सा जगी। परमात्मा कभी भी जीवन से हटकर नहीं है, यह बात मैं बार-बार कहना चाहूंगा क्योंकि परमात्मा शाश्वत है, वह मृत नहीं, जीवित है, आत्मा का ही परम रूप है। जो मृत होता है वही मर्यों में विहार करता है और जो जीवित होता है वह जीवन और अमृत में विचरता है। जब अमृत की अभीप्सा/८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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