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________________ जैसे को तैसा देने के लिए तो बहुत दुनिया है । तुम 'जैसे को तैसा' देने के लिए नहीं हो। तुम जो हो, वही हो। तुमने अगर जैसे को तैसा दे दिया तो इसमें तुम्हारी क्या समझदारी रही। तुम क्या हो, अपनी ओर से वह दो। जैसा वह है उसे वैसा ही दे दिया तो तुम, तुम नहीं, जैसा वह है वैसे ही तुम । जितना बुद्ध वह है उतने ही बुद्धू तुम । जो जैसा है उसे तुमने बड़ी समझदारी के साथ, जागरूकता और विवेक से जवाब दिया, वह जैसा रहे या बदल जाए, लेकिन तुम्हारे भीतर जरूर ऊर्ध्वारोहण होगा, पवित्रता आएगी। किसी के क्रोध से तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान उभर आए तो उसका क्रोध तुम्हारे लिए मंदिर की सीढ़ी के बराबर होगा और क्रोध से तुम्हें भी क्रोध आ जाए तो वह तुम्हारे लिए नरक की पहली सीढ़ी के बराबर होगा। वह नरक मरने के बाद नहीं, तुरंत मिलेगा । क्रोध से तुम जलोगे, तड़पोगे और आग-बबूला हो उठोगे। तुम्हें पता है, जब तुम एक बार क्रोध करते हो तो चौबीस घंटे में एकत्रित की गई ऊर्जा खत्म हो जाती है । मुझे डॉक्टर ने कहा दोनों समय भोजन करिए। मैंने कहा एक समय ही काफी है। उसने पूछा कितनी रोटी खाते हैं, मैंने कहा- दो। उसने कहा और अधिक खाया कीजिये । पर मेरे लिए तो दो ही पर्याप्त है । सुबह जब ध्यान के लिए बैठे तब कुछ भूख महसूस हुई पर जब ध्यान करके उठे तो पेट इतना भर गया, मन परितृप्ति से इतना सराबोर हो गया कि मानो खूब भोजन किया हो । जब भूख ही नहीं है, पेट ही भर गया तो भोजन क्या किया जाए। जब लगेगा कि उसकी तरंग कम हो गई है, भोजन कर लेंगे। भरेंगे इस पेट को । आप जो कहते हैं न कुंडलिनीजागरण, जब वह ऊपर उठती है हमें भर देती है, ताजगी दे देती है कि हमें खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। वैसे यह अलग स्टेज (स्थिति) की बात है । मेरे प्रभु ! क्रोध आता है, स्वाभाविक है लेकिन हम सिर्फ एक ही बात सीखें कि क्रोध को जितनी मिठास, प्रेम, अहोभाव के साथ प्रगट कर सकें तो शायद जैसे को तैसा तो दिया जा सकेगा लेकिन फिर वह तैसा नहीं होगा हमारे जैसा होगा । क्या गुरुजनों के प्रवचन के पश्चात ताली बजाना उचित है ? मेरे विचार से अमृत वचनों को सुनकर जीवन में उतारा जाता है। ताली तो मंत्री के Jain Education International चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ / ६७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003960
Book TitleChetna ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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