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साथ प्रार्थना-पत्र भेजा था। नियमानुसार प्रार्थना-पत्र के साथ किसी विशिष्ट व्यक्ति या जिम्मेदार व्यक्ति का संस्तुति-पत्र भी साथ में नत्थी होना आवश्यक था। प्रार्थना-पत्र में कैदी ने अपनी योग्यता तथा प्रतिभा का भी उल्लेख किया। पत्र पढ़कर राष्ट्रपति प्रभावित हुए। उन्होंने सजा माफ करने का मानस बना लिया। पर उनके कानूनी सलाहकार ने कहा, 'सर! लेकिन इस सजा प्राप्त कैदी की माफ़ी की सिफ़ारिश किसी ने नहीं की। जबकि नियमानुसार किसी का संस्तुति-पत्र होना आवश्यक है। लगता है सिफारिश के लिए इसका कोई मित्र भी नहीं है।'
राष्ट्रपति की सकारात्मक दृष्टि समझिएगा। राष्ट्रपति ने यह कहते हुए उसकी सजा माफ़ कर दी थी कि जिसका कोई सिफ़ारशी नहीं है उस मित्रविहीन का मैं मित्र बनकर उसकी शेष सजा माफ़ करता हूँ। देश के असहाय नागरिक को भी न्याय मिलना चाहिए, इसलिए उसके भविष्य पर विचार करते हुए उसकी प्रार्थना स्वीकार करता हूँ।
व्यक्ति की यह उदार दृष्टि ही व्यक्ति की सकारात्मकता है। सकारात्मकता को आप जीवन के माधुर्य का राज समझें। बड़ी से बड़ी विपत्ति में भी सकारात्मकता आपको पार लगने की शक्ति प्रदान करेगी। जब भी आपको लगे कि घर में, व्यापार में, समाज में कहीं कोई विवाद हो गया है, संघर्ष की या बात बिगड़ने की उम्मीद है, आप तत्काल सकारात्मकता के मंत्र को याद कीजिए। आपकी यह सकारात्मकता आपको धैर्य भी देगी, साहस भी देगी, विचार-क्षमता भी देगी, बुद्धि की ऊँचाई भी देगी। मैं तो कहूँगा कि सकारात्मकता को अपने गाँठ बाँध लें, अपनी आँखों की रोशनी बना लें। यह संकल्प कर लें कि मैं सहज जीवन जीऊँगा और हर हाल में हर कार्य, हर वस्तु, हर व्यक्ति के प्रति सकारात्मक/पोजिटिव रहूँगा।
जीवन को साधनामूलक, ध्यानमूलक स्वरूप देने के लिए अंत में मैं दो बातें पुनः निवेदन कर देता हूँ और वह है सचेतनता और निर्लिप्तता। इनमें से पहली बात है सचेतनता। जीवन की प्रत्येक गतिविधि को सचेतनता के साथ सम्पादित किया जाए तो प्रत्येक कार्य अपने आप में ध्यान हो जाता है। ध्यान में
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शांति पाने का सरल रास्ता
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