SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पारिवारिक धर्म है। दीन-दुखी की मदद करना सामाजिक धर्म है। अपने मानसिक विकारों पर विजय प्राप्त करना और होश और बोधपूर्वक जीवन को जीना आध्यात्मिक धर्म है। याद रखिए सच्चा संन्यास वेश में नहीं है। सेंटीसनेस इज दा मेंटल सिचुएशन। संन्यास तो एक मानसिक वस्तु है। साधु बनना एक अलग बात है, और जीवन में साधुता रखना अहम बात है। आप जीवन के संत बनें । गृहस्थ में भी शांति और सौम्यता को अपनाकर स्वयं को साधु और संत बना लें। वेश बदलकर संत बनने वाले तो ढेर सारे हैं, जरूरत है ऐसे लोगों की, ऐसे बोध-पुरुषों की जो जीवन के संत हों। जीवन में उसी संतता को, उसी साधुता को, उसी बुद्धता को जीने के लिए ही मैंने चार बिन्दुओं को जीवन में जीने की प्रेरणा दी है। इन बिन्दुओं ने मुझे जीवन का प्रकाश और आनंद दिया है अथवा यों समझें कि भीतर के प्रकाश और आनंद ने इन बिन्दुओं को जन्म दिया है। पहला है: सहजता, दूसरा है: सकारात्मकता, तीसरा है: सचेतनता और चौथा है: निर्लिप्तता। पहले दो बिन्दु व्यावहारिक जीवन से जुड़े हुए हैं, अगले दो बिन्दु आध्यात्मिक जीवन से। चारों बिन्दुओं को एक साथ जोड़कर ही जीवन को शांतिमय, सुखमय, आनंदमय और प्रज्ञामय बनाया जा सकता है। आरोपित जीवन, कृत्रिम जीवन से आप अपने-आप को जितना बचा सकेंगे, आप उतने ही अधिक आप सुखी-स्वस्थ रहेंगे। लोग अपने-आप को बहुत कृत्रिम बना रहे हैं। लोग चेहरे को, मुस्कान को, व्यवहार को, सबको कृत्रिम, आर्टिफिसियल बना बैठे हैं । सहजता, नैसर्गिकता चली गई है। होठ हैं तो होठों पर भी लिपिस्टिक, चेहरा है तो चेहरे पर भी पाउडर, व्यवहार है तो व्यवहार भी कृत्रिम। और मुस्करा रहे हैं तो मुस्कान भी दिखावटी। रिश्ते हैं, तो उन्हें निभाना भी मजबूरी। कोई मर जाए, तो उसमें शरीक होना भी एक सरपच्ची। यानी कुल मिलाकर जीवन की सहजता-सरलता गिरवी रखी जा चुकी है। - जो अपना सहज जीवन जीते हैं वे अपनी सहजता में जान चुके होते हैं कि आदमी को खुली किताब की तरह होना चाहिए। बन्द करो तब भी ८६ शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003959
Book TitleShanti Pane ka Saral Rasta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy