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भीतर स्वर्ग को ईजाद करो, प्रेम लाओ, शांति लाओ, आनंद लाओ, अपनी
ओर से औरों को हमेशा सुख, शांति और सुकून दो। जीवन में सदा शांति, संतोष और सौम्यता रखो, तुम हर हाल में स्वर्ग के पथिक रहोगे।
___ हम जब-जब, जितनी-जितनी देर भी अपने भीतर यह आनंदित दशा बनाए हुए रखेंगे, उतनी-उतनी देर हमारे साथ स्वर्ग होगा, स्वर्ग का आनन्द होगा। याद रखें जिनके लिए वर्तमान स्वर्ग है उनके लिए आकाश में भी स्वर्ग है। जिनके भीतर नरक है, उनके लिए पाताल में भी नरक है। जिनके भीतर स्वर्ग है उनके लिए पाताल में भी स्वर्ग ही है।
धर्म-अधर्म, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, आत्मा-परमात्मा इन सब बातों को अपने आंतरिक जीवन के साथ जोड़कर देखें तब स्वत: यह समझ में आने लग जाएगा कि मेरा वास्तविक धर्म क्या है, मेरी साधना क्या है और मैं अपनी साधना से क्या परिणाम प्राप्त करना चाहता हूँ।
धर्म न हिन्दु बौद्ध है, धर्म न मुस्लिम जैन। धर्म चित्त की शुद्धता,
धर्म शांति सुख चैन॥ अन्तर्मन की शुद्धता इंसान का पहला धर्म है। जीवन में शांति और सौम्यता रखना व्यक्ति का पहला धर्म है। वह कार्य करना धर्म है जो स्वयं के लिए भी सुखकारी हो और दूसरों के लिए सुखकारी हो। केवल स्वयं के सुख की सोचना तो स्वार्थ है, वहीं औरों के सुख का भी ख़्याल रखना परमार्थ है।
मैंने सुना है: किसी रास्ते पर किसी ने एक बड़ा पत्थर रख दिया। बीच रास्ते पर पत्थर पड़ा था। लोग आते, जाते, कहते भी कि किसने पत्थर सड़क पर रख दिया? पर कोई उसे हटाता नहीं। कई दफा लोग उससे ठोकर भी खा बैठते फिर भी उसे किसी ने हटाया नहीं।
कहते हैं एक दिन फूलों की टोकरी लिए हुए एक माली उधर से गुजरा। वह अपनी मस्ती में चल रहा था। अचानक, उसे उसी पत्थर से ठोकर लगी। वह गिर पड़ा। उसके सारे फूल भी बिखर गए। उसने फूलों को इकट्ठा ८४
शांति पाने का सरल रास्ता
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