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________________ निश्चय ही एक समय में भी मिट्टी ही था। मिट्टी का अहसास तो अब भी है। पर अब मिट्टी मिट्टी नहीं है। अब मिट्टी में से मूर्ति साकार हुई है। अब उस मिट्टी में भी मूर्ति का आनंद है। पत्थर भले ही पत्थर क्यों न हो, पर जीवन के साथ कुछ घड़ने का प्रयोग करो, तो वही पत्थर मंदिर का भगवान बन जाता है। व्यक्ति अपने उसी पत्थर को ही तो घड़ने के लिए विद्यालय जाता है, शिक्षकों की शरण लेता है, ज्ञान-विज्ञान के सम्पर्क में आता है, गुरुजनों और शास्त्रों का प्रकाश पाता है, ध्यानयोग भी उसी का ही एक अगला चरण है। बौद्धिक तल पर तो शिक्षित हो गए, अब हम मन और प्राणों की गहराई में उतरकर आत्मिक तौर पर, आध्यात्मिक तौर पर स्वयं को सुन्दर, सशक्त और आनंदपूर्ण बना रहे हैं। जहाँ पत्नी का प्रेम, बच्चों का ममत्व, व्यापार की सफलता भी व्यक्ति को अन्तर-तृप्त नहीं कर पाती है, ध्यानयोग हमारे अस्तित्व की गहराई के साथ हमें जोड़कर हमें वास्तविक रूप से शांतिमय और समाधिमय करता चला जाता है। जैसे विद्यालय में जाकर आपने विद्यार्जन के लिए श्रम किया है, अध्यात्म के इस मंदिर के लिए भी आपको उतना ही श्रम करना होगा। बाहर की विद्या और भीतर का ज्ञान - दोनों मिलकर ही जीवन को पूर्णता देते हैं। इसलिए लगे रहो। मन को सदा उन्नति की ओर, आकाश की ओर, मुक्ति की ओर ले जाते रहो। कमजोर मन से ध्यान करोगे तो शरीर असहज लगेगा या चित्त भटकाएगा। इसका दोष ध्यान को नहीं हमारे कमजोर मन को है। अगर पूरी सुदृढ़ मानसिकता के साथ ध्यान में उतरोगे तो पंगू भी पहाड़ चढ़ जाते हैं और अंधे भी जंगल पार कर जाते हैं । जिस व्यक्ति ने अपनी ज़िन्दगी में नौवीं कक्षा भी सप्लीमेंट्री से पास की थी, वही उस परावस्था को उपलब्ध कर लेता है कि आज दुनिया भर में उसे सुना और पढ़ा जाता है। दुनिया में चाहे कोई कुलपति भी क्यों न हो, बचपन में तो हर कुलपति भी तुतलाता ही है। आखिर, दुनिया के बड़े-से-बड़े ज्ञानी और दार्शनिक को भी बाहरखड़ी सीखने से तो गुजरना ही पड़ता है। अपने संकल्पों को, अपनी ध्यान-धारणा को, अपने मन को सुदृढ़ता ५४ शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003959
Book TitleShanti Pane ka Saral Rasta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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