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फेंका, अपना नुकसान कर डाला, तो ऐसी स्थिति में ज़रूर सोचना चाहिए पर
आप यहाँ खड़े थे और अचानक आपके घर की एक दीवार या दीवार-घड़ी गिर पड़ी। अब उस चीज को लेकर अगर आप सोच रहे हैं तो यह मानसिक कमजोरी है। आप अगर अपनी नौका डूबाओ तो चिन्ता जरूर करना पर अगर सागर ने हमारी नौका डूबा दी है तो इसको लेकर चिंता मत करना। वह भवितव्यता थी। होना था, सो हो गया।
जानबूझ कर की गई ग़लती को सुधारने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए पर जो अनजाने में हो जाए उसे प्रकृति की व्यवस्था मानकर स्वागत कर लेना चाहिए।
एक प्यारी-सी कहानी है : एक पिता के तीन पुत्र थे। बड़े पुत्र को उसने अपनी सारी ज़मीन दे दी। मंझले बेटे को उसने अपना सारा ख़ज़ानाजवाहरात दे डाला। मगर जो सबसे छुटका था - गुड्डू, उसे उन्होंने नौपरिवहन से जुड़ा व्यापार दिया। उसे साथ ही एक अंगुठी भी दी। पिता बोले, 'बेटा तुम मेरे सबसे प्यारे बेटे हो। सबके पास व्यापार है सो मैंने बड़े और मंझले बेटे को जो-जो योग्य समझा उनको दे दिया, पर मरने से पहले मैं तुम्हें एक खास चीज दे कर जाता हूँ।' उन्होंने उसे एक अंगूठी दी और कहा, 'बेटा, इस अंगुठी को हमेशा अपने पास रखना। हालांकि तू बहुत समझदार है, अपनी ज़िन्दगी आराम से जी लेगा। तू व्यापार करने में भी निपुण है, मगर तू अभी छोटा है, सो पिता का छोटे के प्रति ज्यादा दायित्व होता है। मैं तुम्हें यह एक अंगूठी देकर जा रहा हूँ। यह तुम्हारे जीवन में 'संकट-की-सलाहकार' साबित होगी। इसे तुम अपना गुरु समझना। अगर तुम्हारे सामने ऐसी कोई नौबत आ जाए कि तुम झेल न पाओ, सामना न कर पाओ तब इस अंगूठी का उपयोग करना। इसमें एक रहस्य छिपा हुआ है।' यह कहकर पिता चल बसे।
अनुज अपना जीवन जीता रहा। वह जहाजों का व्यापार कर रहा था और उसके पास तीन-तीन जहाज थे। खुदा न खास्ता, होनी को कौन टाल सकता है। होनी तो होकर रहेगी। होनी तो होती ही है। इधर तीर का लगना, उधर आँख का फूटना। तुम दोष तीर को देते हो। आँख फूटनी थी तो तीर का
सहजता को बनाइए समाधि का साधन
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