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की कला आ जाए तो आदमी स्वयं ही अपने नरक को स्वर्ग बना लिया करता है। नरक को स्वर्ग बनाना मनुष्य के हाथ में है। अपना भाग्यविधाता मनुष्य स्वयं है।
मुझ सरीखे व्यक्ति को यदि नरक भी भेज दिया जाए, तो मेरे लिए चिंता की बात नहीं है। मुझे पता है स्वर्ग का रास्ता नरक से ही निकलता है। हमें स्वर्ग जाने के लिए पहले नरक को ही बदलना पड़ता है।
धर्म की विभिन्न परम्पराओं में एक परम्परा कहती है कि भगवान कृष्ण मरकर नरक में गए। वे बाद में तीर्थंकर होंगे। हालांकि इस तरह की बात कहना ख़तरनाक है, पर हम इसे पोजिटिव अर्थों में लें। कहने वाले तो गाँधी जी और चन्द्रप्रभ को भी नरक में गया कह देंगे, पर याद रखो नरक में तुम्हारी नहीं, कृष्ण जैसे लोगों की ही ज़रूरत है ताकि वे वहाँ पहुँचकर उसे भी स्वर्ग में बदल सकें । भागवत कथाओं की जरूरत आजाद चौक और गाँधी मैदान में कम, कारागार में ज्यादा है।
अगर कृष्ण जैसे लोग नरक में नहीं जाएँगे तो नरक सदा-सदा के लिए नरक ही बने रहने पर विवश रहेगा। हम भी यदि अपने जीवन को स्वर्ग का पथ नहीं दे पाए, तो सावधान! यों ही क्रोधी, अभिमानी, शराबी, झूठफरेबी, स्वार्थी बने हुए हम नरक को जीते रहेंगे।
या तो निश्चय ही लोगों को नरक अच्छा लगता होगा, तभी तो वे नरक में जाने जैसा काम करते हैं। या फिर वे स्वर्ग-नरक को मानते ही नहीं होंगे। सो जो मन में आया जानवर की तरह कहीं कुछ कर बैठते हैं। अगर स्वर्ग में विश्वास है, तो स्वर्ग के पथ पर चलना होगा। जीवन को आज, अभी, यहीं से ही स्वर्गमय बनाने की पहल करनी होगी।
स्वर्ग-नरक प्रतीकात्मक शब्द हैं। अच्छाई को दिया गया सबसे अच्छा शब्द है स्वर्ग। नरक बुराई और बुरे फल का निकृष्टतम प्रतीक है। नरक कह दिया यानी आ गई लास्ट स्टेज । इससे बड़ी किसी की तौहीन नहीं की जा सकती। स्वर्ग कह दिया तो इससे बड़ा सम्मान और कोई दिया नहीं जा सकता। कृष्ण को किसी के द्वारा पहले नरक, फिर स्वर्ग जाने की बात कही मुस्कान दीजिए, मुस्कान लीजिए
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