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किसी भी व्यक्ति के जीवन में समग्र शांति तभी आती है जब व्यक्ति अपने स्वभाव को शांतिमय बनाता है, अपने स्वभाव को सौम्य और आनन्दमय बनाता है। ऐसी शांतिमयी और आनंदमयी अवस्था पाने के लिए ही हम लोग सचेतन श्वसन-क्रिया करते हैं, अर्थात् पूर्ण सावचेती, पूर्ण जागरूकता और पूर्ण एकाग्रचित्त होकर अपनी श्वसनधारा पर अपने-आप को केन्द्रित करते हैं, श्वसनधारा की अनुपश्यना करते हैं। अनुपश्यना यानी लगातार देखना, अनुभव करना। मैं स्वयं को शांतिमय बना रहा हूँ, शांतिमय बना रहा हूँ, इसी धारणा, इसी भावदशा में अपने आप को लगातार..... लगातार तत्पर करते चले जाते हैं, स्वयं की आंतरिक शांति और अस्तित्व के साथ एकलय, एकाकार होते चले जाते हैं। इस दौरान जब-जब चित्त चंचल होता है, हम 10-12 गहरी साँस लेते हैं, पुनः अपनी हर साँस को 'स्लो एण्ड डीप' धीमी, धीमी और गहरी करते चले जाते हैं। इसी से शांति साकार होने लगती है। ध्यान-धारणा सफल होती है।
मेरी समझ से अगर हम लोग अपनी ओर से शांति को अपना लक्ष्य बनाते हैं, आनन्दमयी दशा को अपना लक्ष्य बनाते हैं, तो निश्चित तौर पर हमारे चित्त के क्लेश, संक्लेश, विकार और तनाव, अन्तर्द्वन्द्व, वैर-वैमनस्य, एक दूसरे के प्रति पलने वाली ईर्ष्या और जलेसी से हम मुक्त होने लगते हैं।
___ शांति की इस साधना को आप जितने अधिक सचेतन, सावचेत, कॉनसियस होकर करेंगे, तो भले ही भीतर कितनी ही खटपट क्यों न हो, आप पाएँगे कि धीरे-धीरे सब कुछ शांतिमय होता चला जा रहा है। हम ध्यान की प्रत्येक बैठक को खूब आनन्दमयी मनोदशा के साथ करें।
हो सकता है कोई विधि, कोई बैठक कभी आपको अनुकूल न भी लगे, तब भी सात दिन तक केवल एक ही धारणा, एक ही संकल्प अवश्य बनाए रखें कि मैं स्वयं को शांतिमय बना रहा हूँ और ऐसा करने के लिए ज़रूरी नहीं है कि आप हर समय मेरे पास ही ध्यान में बैठें। आपको जहाँ कहीं भी ध्यान में बैठना अनुकूल लगे, श्वसन-क्रिया पर ध्यान करें और यह मानसिकता प्रगाढ़ करते जाएँ कि मैं अपने आप को शांतिमय बना रहा हूँ। बस, शांति को
मन में चलाइए शांति का चैनल
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