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सकता है, अभाव में भी स्वभाव बनाया जा सकता है, हानि हो जाए तब भी अगर मानसिकता ठीक रहे तो आप हानि में भी अपनी आनन्द - दशा को, अपनी शांत दशा को बरकरार रख सकते हैं। मैं हर हाल में आनंदित रहूँगाआपका यह फैसला ही आपके लिए आनन्द - पथ का निर्माण करता रहेगा ।
मैं शांति का पक्षधर हूँ । कहते हैं अतीत में जब महाभारत हुआ था, तो गांधारी ने इसके लिए कृष्ण को भी दोषी ठहराया, पर कृष्ण युद्ध के विरोधी थे। उन्होंने अंतिम चरण तक शांति का प्रयास किया। कभी कृष्ण ने कहा था कि 'पाण्डवों को पाँच गाँव भी दे दो तब भी युद्ध टाला जा सकता है।' व्यक्ति के द्वारा अन्तिम क्षण तक यह प्रयास किया जाना चाहिए कि उसकी ओर से शांति हो, शांति रहे, व्यक्ति शांति का स्वामी बना हुआ रहे ।
कोई भी व्यक्ति क्रोध का तभी इस्तेमाल करे जब क्रोध के अलावा शांति के समस्त द्वार, समस्त रास्ते बन्द हो चुके हों। अपने मुँह से गाली तभी निकालनी चाहिए तब तुम्हारे पास गाली निकालने के अलावा अन्य कोई विकल्प या रास्ता खुला ही न रहे। गाली दो, मगर गाली को अन्तिम चरण में, पारमाण्विक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करो ।
क्रोध आदमी के जीवन का परमाणु अस्त्र है और परमाणु अस्त्र का उपयोग, ब्रह्मास्त्र का उपयोग बात-बात में करने से ब्रह्मास्त्र की शक्ति तुम्हारे लिए आत्मघातक बन जायेगी। जीवन में नकारात्मकता का तभी इस्तेमाल किया जाना चाहिए जब आदमी के द्वारा अपनाई जाने वाली सकारात्मकता सम्पूर्णत: निष्फल हो जाए। वरना याद रखिए कि सकारात्मकता से बढ़कर और कोई समाधान, और कोई अमृत, और कोई संजीवनी होती ही नहीं है I
मैंने कहा मैं शांति का पक्षधर हूँ । मेरे लिए शांति ही स्वर्ग है, मेरे लिए शांति ही जीवन की गंगा है। शांति में ही धर्म का वास है । शांति ही प्रभु है, और प्रभु स्वयं शांतिस्वरूप है।
आपने जब-तब माचिस का उपयोग किया है । माचिस में बारूद की पचास तीलियाँ होती हैं । तीली का निचला हिस्सा लकड़ी है और ऊपरी हिस्सा बारूद है । हमारे शरीर का भी निचला हिस्सा देह है और ऊपरी हिस्सा
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शांति पाने का सरल रास्ता
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