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में बैठ नहीं सकते। मेरे भाई, चौबीसों घंटे मंदिर में तो नहीं रहा जा सकता है, पर चौबीसों घंटे अपने आप में तो ज़रूर रहा जा सकता है, अपने आप से जुड़ कर रहा जा सकता है। बोलो, बतियाओ बाहर से, मगर पल-पल अपना आनन्द लो, अपने में सदा आनन्दित रहो।
फैसला कर लीजिए कि आपको अपने जीवन के लिए क्या चाहिए? अगर चाहिए शांति, शांति, शांति तो सच्चाई यह है कि शांति ही अपने आप में सुख है। शांति ही जीवन की सबसे प्यारी सहेली है, शांति ही जीवन का सबसे बड़ा स्वर्ग है । शांति में ही आरोग्य और आनंद की आत्मा समायी है । शांति में ही सद्भावों का संगीत है और शांति ही परमात्मा की प्रार्थना है। स्वयं को शांतिमय बनाकर व्यक्ति पाप, ताप और अभिशाप– तीनों को नष्ट कर सकता है। गंगा सिर्फ पाप का नाश करती है, चन्द्रमा सिर्फ ताप का नाश करता है, पर मन की शांति तो पाप, ताप और अभिशाप- तीनों को समाप्त कर देती है।
वास्तविकता तो यह है कि शांति को पाना ही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। यह ईश्वर का मार्ग है और ईश्वर के मार्ग पर जीने के लिए व्यक्ति का शांत, सौम्य व पल-पल आनन्दित होना पहली अनिवार्यता है। अपनी ओर से प्रेमपूर्वक इतना ही अनुरोध है।
अमृत प्रेम ! नमस्कार!
निर्णय कीजिए- शांति चाहिए या सफलता?
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