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अब वही व्यक्ति ईश्वर को उपलब्ध कर सकता है जो शांति के रास्ते पर अपने कदम बढ़ाता है। ईश्वर से मुलाक़ात करने के लिए जो अपने क़दम बढ़ाता है उसी को ईश्वर अपने काबिल समझता है । काबिल लोगों का ही वह साहिल बन कर, उनके पास आकर वो अपने आपको प्रकट करता है। अपना आनन्द देता है, अपनी शांति की रोशनी और ज्ञान का आभामण्डल प्रदान करता है। अपने प्रेम की प्याली पिलाता है, अपनी करुणा की छत्रछाया उन पर बनाता है, अपने आनन्द की बारिश, फुहारें उन पर वो बरसात करता है।
__ईश्वर मिलेंगे उन्हीं को, जिन्होंने अपनी काबिलियत बनाई और काबिलियत उन्हीं लोगों के रास्ते पर बन पाएगी जो लोग अपनी शांति का प्रबन्ध करेंगे। मेरी शांति का प्रबंधक मैं हूँ और आपकी शांति के प्रबन्धक आप हैं। मेरा मैनेजर मैं, और आपके मैनेजर आप। और फैक्टरियों में सौ-सौ कर्मचारी रखे जा सकते हैं पर यह तो भीतर का मामला है। इस अन्दर के मामले में केवल अन्दर वाला ही अपनी पहचान बना सकता है। जिन खोजां तिन पाइयां गहरे पानी पैठ' कि 'तेरा सांई तुज्झ में ज्यों पूहुपन में बास; कस्तूरी का मिरग ज्यों फिरी-फिरी ढूँढ़े घास।'
लोग उसे बाहर ढूँढ़ते रहते हैं। वो कहीं नहीं है और वो सब जगह है। अगर ढूँढ़ना है तो पहले अपने आप में ढूँढ़ें, अपने आप में न मिल पाए तो कहीं
और ढूँढ़ने के लिए जाना; वो सब जगह व्याप्त है। अपने आप में पाओगे, तो हर मूरत में आपको प्रभु की सूरत दिखाई देगी। और जब तक अपने आप में न देखोगे, अपनी शांति में उसका रसास्वादन न करोगे तब तक उसे कहीं नहीं पा सकोगे। मंदिर में चौबीस घंटे नहीं बैठा जा सकता, आधे घंटे के लिए ही जाया जा सकता है। सामायिक में चौबीस घंटों के लिए तो बैठा जा सकता है लेकिन जिंदगी भर तो उसमें भी नहीं बैठा जा सकता है। लोग महाराज बन जाते हैं, कहते हैं संन्यास ले लिया अब तो उनके चौबीसों घंटों की 'सामायिक' हो गई। आप किसी महाराज को भी चौबीस घंटे किसी एक आसन पर बैठा दो। उन्हें भी चींटियाँ काटने लग जाएँगी। वो भी खिसक जाएँगे।
संत लोग जीवन भर की 'सामायिक' तो ले लेते हैं मगर 'सामायिक
शांति पाने का सरल रास्ता
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