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ध्यान के लिए शरीर का स्वस्थ रहना अपरिहार्य है । आसन इसीलिए किये जाते हैं । आसन का सम्बन्ध ध्यान से नहीं, अपितु शरीर से है। आसन एक तरह के व्यायाम के लिए हैं । भूख लगे, जीमा हुआ पचे, शरीर शुद्धि हो, यही आसन की अन्तरकथा है । ध्यान शरीर-शुद्धि नहीं बल्कि चित्त शुद्धि है । ध्यान के लिए तो वही आसन सर्वोपरि है, जिस पर हम दो-तीन घंटे जमकर बैठ सकें।
आसन शरीर का एकान्त कर्म योग है। यह शरीर को श्रम का अभ्यासी बनाये रखने का दत्तचित्त उपक्रम है ! जो तन्मयतापूर्वक काम करता है, वह कई तरह के आसनों को साध लेता है । अध्यात्म का अर्थ यह नहीं होता है कि सब काम छोड़-छाड़ दो। काम से जी चुराना अध्यात्म नहीं है, अपितु काम को तन्मयता एवं जागरूकतापूर्वक करना अध्यात्म की जीवन्त अनुमोदना है। निष्क्रियता अध्यात्म की परिचय-पुस्तिका बनी भी कब ! अध्यात्म का प्रवेश-द्वार तो अप्रमत्तता है। प्रमाद छोड़कर दिलोजान से काम करते रहना इस कर्मभूमि का महान् उद्योग है ।
उद्योग अर्थात् उद् + योग>ऊँचा योग। उद्योग की बुनियाद श्रम है और श्रम करना ऊँचा योग है। अगर श्रम ठीक है, तो उद्योग करना कहाँ पाप है ! यह तो जीवन की साधना का एक जरूरतमन्द पहलू है । अपनी मेहनत की रोटी खाना अपने पौरुष का पसीना निकालना नहीं है, वरन् पसीने के नाम पर उसका उपयोग करते हुए, उसे जंग से दूर रखना है ।
___ अपने हाथों से तन्मयतापूर्वक श्रम करना पापों से मुक्ति पाने का आसान तरीका है। दूसरों द्वारा कोई काम करने की बजाय स्वयं करना अधिक श्रेयस्कर है | खाते-पीते, उठते-बैठते, सोते-जागते हर समय होश रखना स्वयं को गृहस्थ-सन्त के आसन पर जमाना है। "
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