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श्वासोच्छ्वास - जीवन की अबाध यात्रा है । साँस मुसाफिर है नाक से फेफड़ों की यात्रा का । साँस लेने और छोड़ने के बीच एक अवकाश का अस्तित्व है । यह निरा कोरा नहीं है, अपितु जीवन को नाक की डंडी पर रखकर चिन्तन की आँखों के कोइयों से झांकने का तरीका है । उस अवकाश की बढ़ोतरी अन्तरंग में जीवन-शक्ति और जीवन - शान्ति की पदोन्नति है ।
साँस का छोड़ना अहंकार को देश निकाला है । साँस का लेना घर के आँगन में विराट की अगवानी है । निष्कासन और पदार्पण दोनों की सन्धि में चेतना की, झरोखे से झाँकती माधुरी है । यह अन्तर ऋचाओं के चरम संगान में मौन की अन्तहीन अमराई है। योग में साँसों का एक सम्भावित समय के लिए मौन रखना ब्रह्मनाद की पदचाप सुनने की पहल है ।
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