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मन एक महान कार्यकर्ता है। मन को मारने की अपेक्षा उसे एक सृजनात्मक शक्ति के रूप में देखा जाना चाहिये । उसे मारकर दमन करने की बजाय मित्र का-सा व्यवहार करने से वह मित्रवत् ही कार्य करेगा।
स्वस्थ मन के मंच पर ही अध्यात्म के आसन की बिछावट होती है । आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए मन की निरोगिता आवश्यक है और मन की निरोगिता के लिए कषायों का उपवास उपादेय है। विषयों से स्वयं की निवृत्ति ही उपवास का सूत्रपात है । क्षमा, नम्रता और संतोष के द्वारा मन को स्वास्थ्य-लाभ प्रदान किया जा सकता है ।
(समाधि स्वास्थ्य का विपक्ष नहीं है। यह शरीर को एकत्रित ऊर्जा देकर स्वास्थ्य-लाभ की दिशा में सहायिका बनती है। सांसों पर संयम करना, चित्त के बिखराव को रोकना और इन्द्रियों की अनर्गलता पर एड़ी देना-यही तो समाधि के खास हेतु हैं और आयु-वर्धन तथा जीवन-पोषण के लिए भी यही मजबूत सहारे हैं । -
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