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विचार की भूमिका पर सही, संयमित भाषण देना ध्यान है । आचरण • ध्यान का माँ - जाया भाई है । ध्यान में सधे विचारों के अनुकूल जीवन की रचना आचरण है (इसलिए आचरण अन्तर्जीवन की अभिव्यक्ति है । आचरण की उज्ज्वलता अन्तर्बोध की पवित्रता पर निर्भर करती है । विद्वत्ता जीवन का यथार्थ नहीं, अपितु आभूषण है । जीवन - सौन्दर्य की सच्ची आभा तो भीतर से आती है । जो आचरण बोध की तुकबन्दी से अपनी व्यवस्था सही बैठा लेता है, वही आत्मबोध है | ज्ञान-विज्ञान के अनुभवों का निचोड़ है । - ज्ञान का जन्म ध्यान के गर्भ में होता है। I आचरण ज्ञान की ही परछाई है । आत्मबोध की उपलब्धि तो देहातीत और मन से परे की स्थिति है । पुरुष का लगाव मन के साथ तथा स्त्री का लगाव शरीर के साथ अधिक होता
I गाव को विसर्जित करके ही शरीर पर मन से ऊपर उठा जा सकता है। अलगाव की दशा ही आत्मबोध है । अपने मन की प्रतिपल होने वाली • स्खलितता का ज्ञान करने के बाद ही ध्यान में प्रवेश पाया जा सकता है । मन को जबर्दस्ती एकाग्र नहीं किया जा सकता। इसके लिए मन के वास्तविक व्यक्तित्व को पहचानना अनिवार्य है ।
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