SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना का सत्य वीतराग विज्ञान है। राग संसार से जुड़ना है और विराग उससे टूटना । (पीतराग स्वयं की शोध-यात्रा. है । अपने आपको पूर्णता देना ही वीतराग का परिणाम है। साधक तो मुक्ति-अभियान का अभियन्ता है। इसीलिए वह ग्रन्थियों से निर्ग्रन्थ है। ग्रन्थि कथरी है, जिसमें चेतना दुबकी बैठी रहती है । ग्रन्थियों को बनाए/बचाए रखना ही परिग्रह है । मोक्ष महागुहा की यात्रा में परिग्रह एक बोझा है। परिग्रह चाहे बाहर का हो या भीतर का, निर्ग्रन्थ के लिए तो वह 'सूर्य-ग्रहण' जैसा है। इसलिए 'ग्रहण' को प्रभावहीन करने के लिए अपरिग्रह की जीवन्तता अपरिहार्य है। पात्र, वेश, स्थान अथवा बाह्य जगत को विमोक्ष की दृष्टि से देखने वाला ही आत्म-साक्षात्कार की प्राथमिकता को छू सकता है । (साधक के लिए वस्त्र, पात्र तो क्या, शरीर भी अपने-आप में एक परिग्रह है ) मृत्यु तो जन्मसिद्ध अधिकार है। जीवन की सांध्य-वेला में मृत्यु की आहट तो सुनाई देगी ही। मृत्यु किसी प्रकार की छीना-झपटी करे, उससे पहले ही साधक काल-करों में देह-कथरी को खुशी-खुशी सौंप दे। स्वयं को ले जाए सिद्धों की बस्ती में, समाधि की छाँह में, जहाँ महकती हैं जीवन की शाश्वतताएँ। खिसक जाना पड़ता है वहाँ से मृत्यु के तमस् को, अमरत्व के अमृत प्रकाश से पराजित होकर । । [ ३१ ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003958
Book TitleMain to tere Pas Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1990
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy