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पर । भ.महावीर अहिंसा पर प्रबल रहे तो गांधीजी निद्राधीन राष्ट्र को जागृत करने पर । गौतमबुद्ध ध्यानावस्था में अडिग रहे तो ईशा मसीह धर्म पर । राजा मेघरथ जीवदया हेतु बलिदान पर तुले थे तो यह शिकारी शिकार पर । मृगया कह उठी-गगन को चूसकर, झंझावात तूफान को रगड़कर,स्वयं का प्राप्य हासिल करलो । अम्बर का चुम्वन लेकर, आकाश की तरंगों में झूमकर मेरा उल्लास खींच लो, बाण मार दो ! मार दो बाण ! सम्पूर्ण शरीर ले लो, सारा सौन्दर्य वसूल करलो, पर थोड़ा ध्यान रखना। इन दो स्तनों को अवशेष रखने की अनुकम्पा करना ! मेरा नवजात शिशु अभी घास भक्षण नहीं कर सकता। मेरा दूध पीने के लिए वह बैठा सतत् अव्याहत प्रतीक्षा करता होगा । लालायित है वह । हे बन्धु ! तुम्हें शुद्ध अन्तःकरण से कोटि-कोटि विनती करतो हूँ कि कृपा कर इन दो पयोधरों को छोड़ देना । मेरा हृदय, माँ का हृदय है । मेरा यही उपदेश है
आदाय माँस मखिलं स्तन वजिदंगाद् । माँ मुच वागुरिक ? यामि कुरू प्रसादम् ॥
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