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________________ मन्मार्ग वीक्षणं पराः शिशवो मदीयाः अद्यापि शस्य कवल गहणादभिज्ञा ॥ क्या हरिणी की उत्पीड़ा का शिकारी पुरुष के दिल पर असर हुआ होगा ! शायद ही.....। ___ इसीलिए तो हमारे देश को 'मातृभू' कहा जाता है, 'पितृभू' अल्प ! कल्पना कीजिए मात भू की जगह या भारत माता की जगह भारत पिता कहा जाता तो 'वंदेपितरं' कभी चल पाता ! रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने मातृ भूमि को सम्बोधित, किया, पितृभूमि को नहीं । उन्होंने कहा "हे मातृभूमि ! धन और कीर्ति तुझ से ही मिलती है और यह तेरे ही आधीन है, चाहे दे या पास रख । लेकिन मेरा गम (शोक) बिल्कुल मेरा अपना है और जब मैं भेंट करने के लिए लाता हूँ तो तू मुझे आशीर्वाद देती है।" ___ ,माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।” (अथर्ववेद) भूमि मेरी माता है मैं उसका पुत्र हूँ। शक्ति संगठित कर बोलो-वंदे मातरम्, वंदे मातरम् । अरे शिकारी ! शेष तन ले तू भले सारा काट । __ पर पयोधर शेष रख, शिशुचन्द्र जोते हैं बाट । तिर्यञ्च् प्राणी के पशुओं में पुत्र-पुत्री के प्रति इतना समर्पण भाव है तो फिर मनुष्य गति वाली माँ का हृदय तो अवर्णनीय है। ___ स्पष्ट होता है कि माँ का प्रेम अगम्य है, जिसका कोई किनारा नहीं । उसका प्रेम अनुपम और अमित है। सागर के सदृश विशाल है। "प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान" (रसखान) इतना ही नहीं प्रांजल और समुज्जवल भी है । हरिणी पशु होते हुए भी बच्चे के प्रति उसका अपार प्रेम है। जिसके मन में त्याग करने की प्रतिस्पर्धा है, वास्तव में वह प्रेम का ही रूप है। शिकारी तो क्या ? मृगी अपने शिशु को बचाने के लिए सिंह से भी सामना कर बैठती हैं। वह अपनी शक्ति को जानती भी है कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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