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________________ ३४ स्नेह और सौजन्य की देवी है, वह नर-पशु को मनुष्य बनाती हैं, वाणी से जीवन को अमृतमय बनाती है, उसके नेत्र में आनन्द का दर्शन होता है। वह संतप्त हृदय के लिए शीतल छाया है, उसके हास्य में निराशा मिटाने की अपूर्व शक्ति है । एकांकी-नाटक जन्मदाता, कवि व समालोचक डा० रामकुमार वर्मा ने इसकी शक्ति अजय बताते हुए कहा है कि "यदि नारी-माँ वर्तमान के साथ भविष्य को भी अपने हाथ में ले ले तो वह अपनी शक्ति से बिजली की तड़प को भी लज्जित कर सकती है।" जिस प्रकार गोताखोर समुद्र की अतल गहराई में उतर कर विभिन्न प्रकार से अन्वेषण करता है, वैसे ही हम भी यदि शुद्ध अन्तःकरण से गहराई में प्रविष्ट कर विचार करें तो ज्ञात होता है कि मात्र इन्सान की ही नहीं बल्कि समाज और सृष्टि का दारोमदार माँ पर ही है। बस, इन्हीं शब्दों को ध्यान में रखकर अपरिमित कष्ट सहन करती हुई माँ बच्चे का पालन करती है । फूल से कोमल हृदय और वज्र सा अडिग संकल्प लेकर अग्रसर होती है। माँ-चित्रकर्मी के हाथ में तूलिका होती है, उससे वह चाहे जैसी शक्ल बना सकती हैं। उदात्त स्पष्ट वाणी भी अर्पित करती है तथा सच्चे अर्थों में मानव बनाकर देवत्व की ओर अग्रसर करवाती है। बादलों के पानी की तरह माँ द्वारा दिया गया वात्सल्य सर्वत्र पहुंचता है। चाहे वह अनुज हो या अग्रज । वर्षा ऊँची-नीची, गन्दी-अच्छी सब जगह पर बरसती है, इसी प्रकार माँ प्रदत्त प्रेम ऊँच-नीच, क्षत्रिय-वैश्य-ब्राह्मण-शूद्र सभी ग्रहण करते हैं। ___ मानव जीवन को सही दिशा एवं नई दृष्टि प्रदान करने वाली मात्र यह 'माँ' ही है । छतरी जिस तरह धूप-वर्षा से बचाती है उसी प्रकार माँ के सद्विचार, सद्विवेक जीवन की धूप तथा वर्षा से हमारी रक्षा करते हैं। "माली बिना बाग आ बगड़ी जाय" माली के न होने से बगीचा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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