SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गर्जन करती हुई बोली-"पाशा ! आज मेरी कुक्षी को तूने गंदा कर दिया। क्या तू मेरा पुत्र है ? मेरा दूध पिया है ? क्या तू मुझे अपनी माँ का गौरव अर्पित कर सकेगा? बनवीर के आतंक से भयाक्रांत न हो, कायरता का परिचय मत दें। लगता है तू विस्मृत कर बैठा कि हम जैन हैं, शाह हैं और आज शाह के आगे प्राण की भीख माँगने राजा पाया है। मेवाड़ का नाथ बनने वाला मेवाड़ की ही प्रजा से अपनी रक्षा चाहता है। उठा बेटा इसे ! गोदी में ले और दिखा अपना शाहपन, अपना वीरत्व, अपना जैनत्व।। सुषुप्त भाव उद्दीप्त हो उठे। "माँ ! आज तूने मुझे कर्तव्यविमुख होने से बचा लिया । मैं प्रतिज्ञा करता हूँ माँ ! मैं अपने प्राणों की भी परवाह न करके इस सुकुमार की रक्षा करूंगा।" आशाशाह बोला। ____ मुझे आत्म विश्वास था कि तुम ऐसा ही प्रत्युत्तर दोगे। मेरे आशा....इसी के साथ माँ ने प्रेम से उसके माथे पर हाथ फेरा। अत्यधिक सावधानी से कुमार का संरक्षण करते हए आखिर प्राशाशाह ने राजनीति एवं शस्त्रास्त्र संचालन में प्रवीण कर जवान होते ही अन्य सामन्तों की सहायता से युवराज उदयसिंह को चित्तौड़ के राज सिंहासन पर आसीन करा दिया। __इस प्रकार पन्नाधाई भी एक मां थी और यह भी एक माँ। मातत्व दोनों में उमड़ रहा था। एक का अपना पुत्र मर गया पर उसने मेवाड़ के पुत्र की रक्षा की, तो दूसरी ने अपने पुत्र को कर्तव्य की ओर प्रेरित करके अपना आदर्श पेश कर दिया। इसलिए ऐसी माताओं का मातृत्व हमेशा अमर रहेगा। जिस प्रकार पवन से विक्षुब्ध समुद्र में पड़ा पोत, वाहन कला में प्रवीण नाविक की सहायता के बिना आरोही को उसके गंतव्य तक पहुंचाने में असमर्थ होता है। उसी प्रकार माँ की सहायता के बिना व्यक्ति उच्च शिखर तक नहीं पहुंच सकता । कारण यही कि नारीजाति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy