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________________ कोई बिरला ही। न्यायाधीश के सामने पुत्र अपनी सफाई पेश करता है कि मेरी आयु पच्चीस वर्ष की और माँ की चालीस वर्ष के निकट माँ अपराधी है, कारण इन्होंने अभी तक मेरा विवाह नहीं किया। पुत्राधिकार नहीं दिया। मेरा जो उत्तरदायित्व है, सत्ता व सम्पत्ति के अधिकार का जो सुख है, इस यौवनावस्था में नहीं भोगूगा तो क्या वृद्धावस्था में भोगूंगा? यदि माँ की मृत्यु हुई १०० वर्ष की आयु में तो क्या मैं मानव जन्म पाकर कुवारा बाप ही रहूंगा ! मेरे तो मन में आया था कि कल इसकी हत्या कर दूं। पुत्री का कथन है कि मेरी उम्र बीस वर्ष हो गयी अभी तक कोई अच्छा वर माँ ने तलास करनेका प्रयत्न नहीं किया जबकि स्वयं पन्द्रह वर्ष की आयुमें ही वधू बन गयी थी। तो मुझे ऐसा लगने लगा है कि मैं इस घर में ही प्रौढ़त्व को प्राप्त हो जाऊँगी। यदि तीस-चालीस वर्ष इसी घर में व्यतीत हो गए तो मेरा आगे का क्या भविष्य होगा ! मुझे तो अब स्वयं ही निर्णय लेना होगा और निर्णय लेने से पूर्व इस घर का परित्याग कर देना है । __न्यायाधीश के सामने ही माँ कहने लगी-बेटा ! मैं तुम्हारी बातें सुन-सुन कर आश्चर्य चकित हूं। बेटा! तुमने ऐसा विचार किया। मैं तो सोचती थी कि मैं जब तक जीवित हूं तब तक पुत्र पर क्यों भार डालूं । जब अभी से तुम पर भार आजायेगा तो तुम जीवन को गुलाबपुष्प की भांति सुगन्धित नहीं बना पाओगे । बेटी ! तेरे मन में भी ऐसा विचार आ गया ? मैं तो ऐसी सोचती थी कि एक ही लाड़ली बेटी है। ससुराल जाने के बाद तो बुलाना मेरे हाथ में नहीं है। यहाँ जितना लाड़-प्यार मिल जाये, उतना ससुराल में मिलना मुश्किल है। माँ की जरूरत सास पूर्ण करदे, ऐसी सासें होती हैं, पर प्रत्येक ऐसी हो ऐसा होना असंभव है। सास तो हजारों मिलेंगी किन्तु बहू की बुराईयों को बेटी क Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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