SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९०. "इडा सरस्वती मही तिस्रो देवीर्भयोभुवः । बहिः सीदन्त्वा निधः ।" मातृभाषा, मातृसभ्यता और मातृभूमि तीनों सुखकारिणी स्थिर रूप देवियां हमारे हृदयासन पर विराजती रहें तो अति उत्तम है । प्रश्न उठता है तो फिर हमारा हर क्षण माँ हेतु व्यतीत होना चाहिए क्या यही तात्पर्य है ? "नहीं।" मनुष्य की प्रवृत्तियाँ हरपल परिवर्तित होती रहती है। कोई इन्सान खड़ा ही खड़ा नहीं रह सकता, कुछ समय बाद बैठने की अपरिहार्यता हो जाती है। थोड़ा समय खेल कूद में बिताता है तो थोड़ा बातचीत में। इस तरह मनवचन और कर्म का उपयोग विविध प्रकार से होता रहता है। इसमें से कुछ समय माँ के लिए निकालना है । जैसे-एक किसान ने अपना नियम बना रखा था कि कमाईका पहला हिस्सा स्वयं के एवं पत्नी के लिए, दूसरा बच्चों के लिए, तीसरा माँ की सेवा हेतु, चौथा व्यापार या खेती और उन्नति में लगाना । सप्ताह में ६ दिन काम करके अपने बचे हुए अन्य प्रकार के काम रविवार के अवकाश के दिन पूरे कर सके । जिस प्रकार कार्य करने के बाद अवकाश होता है घर के लिए । यही बात माँ हेतु भी समझनी चाहिए इसमें संकोच न करें वरना हम खेल कूद में ही सारा समय व्यतीत कर देंगे। विधि की विडम्बना यही है कि हरेक व्यक्ति आजकल संकोच करता है । अपने पैसे मांगने में, उठते-बैठते, खाने पीने में संकोच करते हैं । यहाँ तक कि सभा के मंत्री सभा का कार्य-विवरण को वाचन करने में भी संकोच करते हैं । पर माँ से दुर्व्यवहार करते, निन्दक व कपूत पद की माला से शोभित होते हुए व्यक्ति संकोच नहीं करता है। ___ गलतफहमी आपके मन की विषम समस्या है। पुत्र-पुत्री के मन में जो भाव होता है कहते हुए शर्म आती है, संकाच होता है क्योंकि उनके अन्तर के भावों को किसी को बताना हर एक व्यक्ति के साहस की बात नहीं। अच्छाई तो हर व्यक्ति बता सकता है परन्तु बुराई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003957
Book TitleMaa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherMahima Lalit Sahitya Prakashan
Publication Year1982
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy