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5 गणणा खारिज फोडिअ नहेब अदा य। संविग एगठाणे जगलासु पन्नरस ॥६॥ संघाडेगो ठवनाकुलेसु सेसेसु बालवुड्ढाई । तरूणा बाहिरगामे पुच्छा विद्वैतऽगारीए ॥१३७॥ | मा०। पुच्छा गिहिणो चिंता दिटुंतो नत्थ कुजबोरीए। आपुच्छिऊण गमणं दोसा य इमे अणापुच्छे ॥२४०॥ परिमिअमनगदाणे नेहादवहरह योव थोवं तु। पाहण वियाल आगम विसन आसासणा दाणं ॥८॥ भा०ा एवं पीइविवुड्ढी विवरीयऽज्येण होइ दिद्वैतो। लोउत्तरे विसेसो असंचया जेण समणा उ॥९॥ जणलाबो परगामे हिंडिन्ताऽऽणेति वसह इह गामे। दिनह वालाईणं कारणजाए य सुलभ तु॥१४०॥ पाहुणविसेसदाणे निजर कित्ती य इहर विवरीयं। पूर्व चमढणसिम्गा न देति संतपि कजेसु ॥१॥ गामम्भासे बयरी नीसंतकडुप्फला य खुजा य । पक्कामालसडिंभा घा(खा)यंति घ(य)रे गया दूरे॥२॥ गामम्भासे बयरी नीसंदकडुप्फला य कुजा या पक्कामारसहिमा खायंनियरे गया दूरं ॥३॥ सिग्घयरं आगमणं नेसिऽण्णेसि च देंनि सयमेव । खायंती एमेव उ आयपरहिआवहा तरुणाम४॥ खीरदहिमाझ्याण लंभो सिग्यतरगं च आगमणं । पडरिक उम्गमाई विजढा अणुकंपिआ इयरे ॥५॥ आपुचिम उम्माहिअ अण्णं गामं वयं तु वचामो। अण्णं च अपजते होंति अपुच्छे इमे दोसा ॥६॥ तेणाएसगिलाणे सावय इत्थी नपुंस मुच्छा य। आयरिअचालवुड्ढा सेहा लमगा य परिचत्ता ॥१४७॥ भा०। आयरिए आपुच्छा तस्संदिढे व तमि उपसंते। चेइयगिलाणकजाइएसु गुरुणो य निग्यमणं ॥२४१॥ भण्णइ पुरनिउत्ते आपुच्छिता वयंति ते समणा।
पाहुण च अप्पाहा असईदूरगओऽविय नियत्त इहराउतदासा ॥३॥ अण्ण गाम चवए इमाई कजाई तत्य नाऊणं । नत्यवि अप्पाहणया नियत्तई वा सईकाले ॥४॥ दुरहिअ खुइडलए नव भड अगणी य पंत पडिणीए । पाओग्गकालऽइकम एकगलंभो अपज्जतं ॥५ गमसई संविगं सण्णिमाइ अप्पाहे। जइ य चिरं तो इयरे ठवित्तु साहारणं मुंजे ॥६॥ जाएँ दिसाए उ गया भत्तं घेर्नु तओ पडियरंनि । अणपुच्छनिग्गयाणं चउहिसं होइ पडिलेहा ॥७॥ पंवेणेगो दो उप्पहेण सह करेंति वचंता। अक्खरपडिसाडणया पडियरणिअरेसि मग्गेणं ॥८॥ गामेव गंतु पुच्छे घरपरिवाडीएं जन्य उन दिहा। तत्येव बोलकरणं पिंडियजणसाहणं चेव ॥९॥ एवं उम्गमदोसा विजढा पइरिकया अणोमांणं। मोहतिगिच्छा य कया विरियायारो य अणुचिण्णो ॥२५० ॥ अणुकंपायरियाई दोसा पइरिकजयणसंस? । पुरिसे काले खमणे पढमालिय तीस ठाणेसु ॥१॥ चोयगवयणं अप्पाऽणुकंपिओ ते य मे परिचत्ता। आयरियअणुकंपाए परलोए इह पसंसणया ॥८॥ भा०। एवंपि अपरिचना काले खवणे य असहुपुरिसे य। कालो गिम्हो उ भवे खमगो वा पढमबिइएहिं ॥९॥ जद्द एवं संसट्ठ अप्पत्ते दोसिणाइणं गहणं । लंचणभिक्खा दुविहा जहण्णमुकोस तिअपणए॥१५०॥ भाग एगत्य होइ भत्तं बिइयंमि पडिग्गहे दवं होइ। पाउम्गायरियाई मत्ते बिइए उ संसत्तं ॥२॥ जइ रित्तो तो दव मत्तगंमि पढमालियाएं करणं तु। संसत्तगहण दवदुलहे य नत्येव जं पत्नं ॥३॥ अंतरपल्लीगहियं पढमागहियं व सत्र भुजेजा। धुक्लंमसंखडीयं वजं गहियं दोसिणं बावि ॥४॥ दरहिंडिए व भाणं भरियं भोच्चा पुणोवि हिंडिजा। कालो वाऽजकमई मुंजेजा अंतरा सधं ॥५॥ एसो उ विही भणिओ तंमि वसंताण होइ खेत्तंमि । पडिलेहणंपि इत्तो वोच्छं अप्पक्खरमहत्थं ॥६॥ दुविहा खलु पडिलेहा छउमत्थाणं च केवलीणं च। अभिनेर चाहिरिआ दुविहा दवे य भावे य॥७॥ पाणेहि उ संसत्ता पडिलेहा होइ केवलीणं तु । संसत्तमसंसत्ता छउमस्थाणं तु पडिलेहा ॥८॥ संसज्जइ धुवमेअं अपेहियं तेण पुष्व पडिटेहे। पडिले
मेव जिणा ॥ ९॥ नाऊण वेयणिज अइबहुअं आउजं च थोबागं । कम्म पडिलेहेउं वचंति जिणा समग्घायं ॥२६०॥ संसत्तमसंसत्ता छउमस्थाणं न होह पडिलेहा। चोयग जह आरक्खी हिंडिताहिंडिया चेव ॥१॥ तित्थयरा रायाणो साहू आरक्खि भंडगं च पुरं । तेणसरिसा य पाणा तिगं च स्यणा भवो दंडो॥२॥ किं कय किं वा सेसं किं करणिज तवं च न करेमि ? । पुषावरत्तकाले जागरओ भावपडिलेहा॥३॥ ठाणे उबगरणे या थंडिलउवयंभमग्गपडिलेहा । किमाई पडिलेहा पुषण्हे चेव अवरण्हे ॥२६४॥ ठाणनिसीयतुयहणउवगरणाईण गहणनिक्लेवे। पुर्व पडिलेहे चक्सुणा उ पच्छा पमज्जेजा ॥१५१॥ भा० उड्दनिसीयतुयट्टण ठाणं निविहं तु होइ नायई। उइदं उच्चाराई गुरुमूलपडिकमागम्म ॥२॥ पक्खे उस्सासाई पुरतो अविणीय मम्गओ वाऊ। निक्खम पवेसवजण भावासण्णो गिलाणाई ॥३॥ भारे वेयणखमगुण्हमुच्छपरियावछिंदणे कलहो। अबाचाहे ठाणे सागारपमजणा जयणा ॥४॥ संडास पमजित्ता पुणोषि भूमि पमजिआ निसिए। राओ य पुत्रमणि तुयद्गुणं कप्पई न दिवा ॥५॥ अडाणपरिस्संतो गिलाणबुड्ढा अणुण्णवेताणं । संथारुत्तरपट्टो अत्थरण निवजणाऽऽलोगं ॥६॥ उवगरणाईयाणं गहणे निक्खेवणे य संकमणे । ठाण निरिक्वपमजण काउं पडिलेहए उवहिं॥७॥ उवगरण वत्थपाए वन्थे पडिलेहणं तु वोच्छामि । पुषण्हे अवरण्हे मुहर्णतगमाइ पडिलेहा ॥१५८॥ भाष्यं । उड्ढे चिरं अतुरिअं सर्व ता वत्थ पुत्र पडिलेहे। तो बिइ पप्फोडे तइयं च पुणो पमजेजा ॥५॥ बत्थे काउड्दमि य परवयण ठिओ गहाय दसियते। तं न भवति उकुडुओ तिरिअं पेहे जह विलित्तो ॥१५९॥ भाग घेनुं थिरं अतुरिअं तिभाग बुद्धीय चक्षुणा पेहे। तो चियं पप्फोडे तइयं च पुणो पमजेजा ॥१६॥ भा०। अणच्चावि अवलिअं अणाणुबंधि अमोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा पाणी पाणपमजणं ॥ ६॥ वत्थे अप्पाणंमि य चउह (३०७) | १२२८ओघनियुक्तिः -
मुनि दीपरत्नसागर
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