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कुणंतु जं जहा भणियं, इच्छता हियमप्पणो ॥१३७॥२०-८४६॥ गच्छाचारपइण्णयं समत्तं ७॥ अहं गणिविज्जापइण्णय बुच्छे बलावलविहिं नवपालविहिमुत्तमं विउपसत्यं । जिणव. यणभासियमिणं पवयणसत्यम्मि जह विट्ठ ॥१॥८४७आदिवस तिही नक्खत्ता करण गहदिवसया मुहुत्तं च। सउणवलं लावलं निमित्तबलमुत्तमं वावि॥२॥होराबलिआ दिवसा जुण्हा पुण दुचला उभयपक्खे। विवरीयं राईसु बलाचलविहिं बियाणाहि ॥३॥ दारं। पाडिवए पडिवत्ती नस्थि विवत्ती भणति वीआए। तइयाए अत्यसिद्धी विजयग्गा पंचमी भणिया ॥४॥ | जा एस सत्तमी सा उ बहुगुणा इत्थ संसओ नस्थि। दसमीइ पत्थियाणं भवंति निकंटया पंथा ॥५॥ आरुगमविग्घ खेमियं च इकारसिं वियाणाहि । जेऽविहु ९ति अमित्ता ते तेरसी पिट्ठो जिणइ ॥६॥ चाउहसि पन्नरसिं बजिजा अट्ठमि च नवमि च । छर्टि चाउस्थि वारसिं च दुण्डंपि पक्खाणं ॥७॥ पढमी पंचमि दसमी पन्मरसिकारसीविय तहेव। एएमय दिवसेसु सेहे निक्खमणं करे ॥८॥ नंदा भद्दा विजया तुच्छा पुन्ना य पंचमी होइ। मासेण य छवारे इकिकावत्तए नियए॥९॥ नंदे जए य पुन्ने, सेहनिक्खमणं करे। नंदे भद्दे सुभदाए, पुन्ने अणसणं करे ॥१०॥ दारं। पुस्सऽस्सिणिमिगसिररेवई य हत्थो तहेब चित्ता या अणुराहजिट्ठमूला नव नक्खत्ता गमणसिदा ॥१॥ मिगसिर महा यमूलो चिसाह तहचेव होइ अणुराहा। हत्धुत्तर रेवइ अस्सिणी य सवणे य नक्खते॥२॥ एएमय अदाणं पत्थाणं ठाणयं च कायई। जइय गहत्थं न चिट्ठइ संझामुकं च जइ होइ ॥३॥ उप्पन्नमत्तपाणो अद्धागम्मि सया उ जो होइ। फलपुष्फोवगवेओ गओवि खेमेण सो एइ ॥४॥ संझागय रविगय विइडेरं सम्गहं विलंपिं च । राहुगयं गहभिन्नं च बजए सपनक्खत्ते॥५॥ अत्यमणे संझागय रविगय जहियं ठिओ उ आइयो। विड्डेरमबदारिय सम्गह कूरगहठियं तु ॥६॥ आइचपिट्टओ से बिलंचि राहूहयं जहिं गहणं । मझेण गहो जस्स उ गच्छह त होइ गहभिन्न ॥७॥ संज्झागयम्मि कलहो होइ विवाओ चिलंपिनक्खते। विड्डेरे परविजओ आइयगए अनिवाणी ॥८॥ जं सग्गहम्मि कीरह नक्खते तत्थ निग्गहो होइ । राहुयम्मि य मरणं गहमिन्ने सोणि उम्गाले ॥॥ संझागयं राहुगयं आइचगयं च दञ्चलं रिक्ख । संझाइचउविमकं गहमकं चेव बलिया पस्सो हत्थो अभीई य, अस्सिणी भरणी तहा। एएमय रिक्खनु, पाओवगमणं करे॥१॥सवणेण धणिहाइ पुणनसूनवि करिज निक्खमण। सयभिसयपूसथंभे (हत्ये) विजारंभे पवित्तिज्जा ॥२॥ मिगसिर अदा पुस्सो तिन्नि धणिहा पुणवसू रोहिणी। पुस्सो य(पुधाई मूलमस्सेसा। हत्थो चित्ता यतहा दस बुढिकराई नाणस्स)॥३॥ पुणवसूणा पुस्सेण, सवणेण धणिट्ठया।एएहिं चउरिक्खेहि, लोयकम्माणि कारए॥४॥कित्तियाहि विसाहाहिमघाहिं भरणीहि या एएहिं चाउरिक्खेहिं, लोयकम्माणि वज्जए॥५॥ तिहिं उत्तराहिं रोहिणीहि, कुज्जा उसेहनिक्खमण । सेहोवट्ठावणं कुजा, अणुन्ना गणिवायए॥६॥ गणसंगहणं कुज्जा, गणहरं चेव ठावए । उम्गहं क्सहिं ठाणं, थाराणि पपत्तए॥७॥ पुस्सो हत्थो अमिई, अस्सिणी य तहेव याचत्तारि खिप्पकारीणी, कजारंभेसु सोहणा ॥८॥विजाणं धारण कुजा, भजोगेय साहए। सज्झायं च अणुन्नं च, उद्देसे य समुहिसे॥९॥अणुराहा रेखई चेव, चित्ता मिगसिरं तहा। मिऊनियाणि चत्तारि, मिउकम्म तेसु कारए॥३०॥ भिक्खाचरणमत्तार्ण, कुज्जा (२३२) ९२८ गणिविद्याप्रकीर्णकं आहा-9-10
मुनि दीपरत्नसागर