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________________ पिता से अनेक प्रश्न पूछता है और इस प्रकार बच्चे में धार्मिक तत्त्वों एवं क्रियाओं के प्रति एक विशेष धारणा का निर्माण होता है। दस-बारह वर्ष की अवस्था में बच्चे का धार्मिक विकास बड़ी तीव्रगति से होता है। चूंकि तब तक उसकी बुद्धि, ज्ञान और अनुभव का विकास हो जाता है, इसलिए वह अनुकरण की बजाय खुद अपने आप ही प्रार्थना या अन्य धार्मिक व्यवहार करता है। इस उम्र में अगर बालक को रोचक धार्मिक पुस्तकें दी जाएँ तो वह धार्मिक भावनाओं को और ज्यादा द्रुतगति से पकड़ सकता है। धार्मिक विकास के कारण बच्चा गलत कार्यों से परहेज रखता है, अच्छे कार्यों में दिलचस्पी लेता है क्योंकि वह जान लेता है कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है और बुरे का बुरा। धार्मिक विकास का सबसे बड़ा फायदा यही है कि बच्चा धार्मिक और नैतिक आदर्शों के प्रति आस्था रखता है, साथ में आदर्श जीवन को व्यतीत करने का प्रयत्न करता है। धार्मिक विचार और क्रियाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन तो किशोरावस्था में होते हैं। इस अवस्था में बालक जहाँ अपनी ही बाल्यावस्था में अर्जितधार्मिक अनुभवकी सच्चाई पर शंकाएँ करने लगता है, वहीं उसके दिमाग में नये-नये प्रकार के प्रश्न भी पैदा होते हैं। जन्ममृत्यु, स्वर्ग-मोक्ष, आत्मा-परमात्मा याऔचित्य-अनौचित्य के बारे में वह प्रश्नवाचक दृष्टि से खुद भी सोचता है और समाधान मिले बगैर वह सन्तुष्ट नहीं होता। वह धार्मिक तत्त्वों और व्यवहारों को तर्क की कसौटी पर भी कसना चाहता है। अत: जरूरी है कि किशोरावस्था में बालक को धार्मिक व्यवहारों की वास्तविकता व उपयोगिताको वैज्ञानिक और बौद्धिक दृष्टि से समझाया जाए। अगर सन्तोषजनक जवाब न मिला तो वह धार्मिक विचारों को कपोल-कल्पित और मनगंढ़त समझ बैठेगा। वह उनकी अनुपालना के प्रति उत्साहित नहीं होगा। बहुधा ऐसा भी होता है कि अपने बेटे को धार्मिक व्यवहारों के प्रति प्रश्न या संदेह करने पर माता-पिता उसे 'नास्तिक' कहने की भूल कर धार्मिक मूल्यों का व्यक्तित्व-निर्माण से सम्बन्ध १ - - - - - - - - - - - - - - - - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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