________________
धार्मिकता को व्यक्ति का जन्मजात गुण माना जाता है, तथापिधार्मिकता काभाव जन्मजात न होकर या तो पारिवारिक वातावरण से अर्जित होता है या फिर अनुभव से। धार्मिक विकास के सिलसिले में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि बालक का परिवार जिस धर्म को मानने वाला होता है, बालक के मन में उन्हीं धार्मिक प्रतिमानों का विकास होता है। ___ जीवन में धार्मिक विकास धीरे-धीरे क्रमश: होता है। जन्म से दो वर्ष तक की अवस्था में धार्मिक तत्त्वों को समझना बालक के लिए बहुत कठिन है। इस उम्र में बच्चा ज्यादा-से-ज्यादा ईश्वर की प्रार्थना से सम्बन्धित कुछ गिने-चुने शब्द ही दोहरा सकता है। स्वर्ग-नरक या पापपुण्य उसके लिए कोई अर्थ नहीं रखते। भगवान की प्रार्थना का प्रेम और सुख तो उसे तब महसूस होने लगता है जब वह पाँच वर्ष का हो जाता है। सुनी-सुनायी या रटी-रटायी प्रार्थना को नित्य-प्रति बोलने से उसे बड़ा आनन्द मिलता है। चूंकि इस अवस्था में नैतिकता का एक सीमा तक ही विकास हो पाता है, इसलिए वह भगवान से एक अच्छा 'बालक' बनने की प्रार्थना करता है।
प्रार्थना के समय पाँच-छह वर्ष का बालक यह मानता है कि भगवान आकाश में रहते हैं। वे वहीं से ही हमारे अच्छे और बुरे कार्यों का निरीक्षण करते हैं। वह यह माना करता है कि अच्छा कार्य करने पर भगवान उसे अच्छा फल देंगे और बुरे कार्य के लिए दण्ड देंगे। कठिनाई महसूस होने पर या दण्ड मिलने पर बच्चा यह महसूस किया करता है कि भगवान उससे रुष्ट हैं, तभी तो उसे यह दण्ड भोगना पड़ रहा है। नतीजन वह गलतियों के लिए मन-ही-मन भगवान से माफी मांगता है। ____बच्चा माता-पिता के साथ पूजा-पाठ के लिए मन्दिर में जाता है, सत्संग के लिए उनके साथ गुरुजनों के पास जाता है। माता-पिता मन्दिर में जैसा करते हैं, बच्चा उन्हें या तो चुपचाप देखता रहता है या उनका अनुकरण करता है। बच्चे के मन में ऐसे क्षणों में मठ-मन्दिर, देवी-देवता, पूजा-पाठ या स्वर्ग-नरक के बारे में जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वह माता--------------
कैसे करें व्यक्तित्व-विकास
८०
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org