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________________ समस्याएँ भी बेशुमार हैं जिनकी बरसात कुदरती होती है। समस्याएँ चाहे स्वत: निःसृत हों या अर्जित-आरोपित, आखिर उनका समाधान तो हमको ही ढूँढना होगा। हमें ही चिन्तन करना होगाउन समस्याओं के पीछे छिपे हुए कारणों का। कमजोर चिन्तन के बल पर समस्याएँ मिटती नहीं हैं, आसमान छूती हैं। चिन्तन हो तार्किक, अनुभवगम्य, अभ्यासजन्य, अभियोजनकरने-में-समर्थ। सच तो यह है कि चिन्तन का जन्म ही समस्याओं के कारण होता है। समस्याओं को सुलझाने के लिए व्यक्ति चिन्तन करता है और समाधान मिलते ही चिन्तन का प्रवाह रुक जाता है। वास्तव में किसी समस्या का समाधान करने वाली मानसिक प्रक्रिया ही चिन्तन है। चिन्तन वातावरण के प्रति चेतनागत समायोजन है। इसकी सम्पूर्ण भूमिका विचारपरक होती है। व्यक्ति अपने पूर्व प्रत्यक्षीकरण एवं अनुभवों के द्वारा संख्या, मुद्रा, दिशा, समय, दूरी, आकार, भार, जीवन, मृत्यु, सौन्दर्य आदि के सम्बन्ध में प्रत्यय बना लेता है और उन्हीं प्रत्ययों से वह सम्बन्धित सूत्रों पर टिप्पणी करता है। प्रत्यय वास्तव में व्यक्ति के पूर्व अनुभवों का योग है जो नई परिस्थितियों को समझने में सहायक होता है। चिन्तन का जन्म, जन्म से नहीं होता, आठ-नौ वर्ष की आयु के बाद ही चिन्तन की धारा फूटती है। आयुकी बढ़ोतरी के साथ चिन्तन की क्षमता में भी बढ़ोतरी होती है। बच्चों के जीवन में पाया जाने वाला चिन्तन प्राय: 'स्वगत भाषण' होता है। वे अन्य व्यक्तियों या पदार्थों पर चिन्तन न कर अपने ही विषय में करते हैं मानो वे अपने आपस ही बात कर रहे हों। चूँकि बच्चा कार्य-कारण सम्बन्ध से अपरिचित होता है, इसलिए उसके चिन्तन में तार्किक संगति नहीं होती। उसके चिन्तन और तर्क में कई बार गुड़-गोबर जैसा ऊटपटांग मेल हो जाता है। पर केवल बच्चा ही क्यों, वयस्क भी कई बार असंगत चिन्तन कर बैठता है। निश्चित तौर पर सही निर्णय के लिए चिन्तन और तर्क में संगति बैठनी आवश्यक है। चिंतन शक्ति का तार्किक विकास ५९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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