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________________ का सम्पूर्ण व्यक्तित्व समाया हुआ है। प्रवृत्तियाँ चूँकि नैसर्गिक हैं, इसलिए उनका आविर्भाव और विकास भी नैसर्गिक रूप से अनिवार्यत: होता है । इन प्रवृत्तियों में बेहद तूफानी ताकत होती है। यदि जीवन के निर्माण और विकास में इन प्रवृत्तियों का समुचित उपयोग किया जाए तो न तो वे कभी पाशविक रूप धारण करेंगी और न ही उनका निरोध या विरोध करना पड़ेगा। उन्हें वांछित दिशा में रूपान्तरित करना ही मूल प्रवृत्तियों की सही उपयोगिता है। - जो मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि बच्चों की मूल प्रवृत्तियों का अनुदमन कर देना चाहिए, लगता है कि वे उन प्रवृत्तियों के मूल स्वरूप से पूरे परिचित नहीं हैं। सच तो यह है कि अगर किसी बालक की मूल प्रवृत्ति को दबाया जाएगा तो वे बच्चे के अचेतन मन में रहकर उसे अनैसर्गिक तथा अस्वाभाविक व्यवहार करने के लिए विवश कर देंगी । जैसे प्रवृत्तियों का दमन उचित नहीं है, वैसे ही उनका निरोध और विरोध भी उपयुक्त मार्ग नहीं है। वास्तव में न तो मूल प्रवृत्तियों का दमन करना चाहिए और न ही उन्हें स्वतंत्र छोड़ना चाहिए, बल्कि मूल प्रवृत्यात्मक शक्ति के प्रवाह को सम्यक् दिशा की ओर मोड़ देना चाहिए। यह वास्तव में प्रवृत्तियों का स्वस्थ मार्गान्तरीकरण और रूपान्तरण है। यद्यपि बच्चों को मूल प्रवृत्तियों के प्रकाशन का अवसर मिलना चाहिए, परन्तु उनको ही, जिन्हें सही मार्ग-दर्शन प्राप्त हुआ हो, अन्यथा यह स्वतंत्रता सामाजिक जीवन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। ५६ Jain Education International कैसे करें व्यक्तित्व विकास For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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