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पहचान पूछे। कुर्सी और घोड़ेमें या आग और पानी में क्या फर्क है? आज्ञाओं का पालन करना-इसे मेज पर रख दो। दरवाजा बन्द कर दो। यह डिब्बी मेरे पास ले आओ।
पाँच वर्ष की अवस्था के बालकों के लिए
हाथ में अंगुलियाँ कितनी हैं? दूसरे हाथ में कितनी हैं? और दोनों को मिलाकर कुल कितनी हैं? चित्र में क्या है या किसके बारे में है? मक्खी और तितली में क्या अन्तर है? आदि-आदि।
बुद्धि-परीक्षण का जो दूसरा रूप है, वह क्रियात्मक बुद्धि-परीक्षण है। यह परीक्षण वास्तव में गूंगे, बहरे, अन्धे या अनपढ़ के लिए है। इस परीक्षण में भाषा या शब्द के स्थान पर मूर्त वस्तुओं, चित्रों याज्यॉमितीय आकृतियों आदि का प्रयोग किया जाता है। जो बच्चा इन प्रश्नों में से जिस अवस्था के उत्तर देने में सक्षम होता है , उसकी मानसिक या बौद्धिक उम्र या योग्यता उतनी ही तीव्र होती है। बौद्धिक क्षमता से ही जीवन में ज्ञान की विशदता अर्जित होती है। स्वभाव, सुझाव, हार्दिकता एवं संवेगात्मकता पर भी बौद्धिक विकास का प्रभाव पड़ता है।
मनुष्य का मस्तिष्क तो जन्म से कोरा कागज है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसका कैसा उपयोग करें और उस पर क्या लिखें? रचनात्मक कार्यों में अपनी अभिरुचि एवं सक्रियता जोड़ना हमारे बौद्धिक व्यक्तित्व का सृजन-धर्मी उपयोग है। बुद्धि, अनुभव, शिक्षा और प्रयत्न से ही अस्तित्व की सभी उपलब्धियाँ हैं।
बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए जिस खास सावधानी की जरूरत होती है, वह यह है कि उन्हें तनाव और चिन्ता से दूर रखा जाए। तनाव मनुष्य के मस्तिष्क की ऊर्जा को जलाता है, स्नायुओं को कमजोर करता है। चिन्ता दिमागी व्यवस्था को चौपट कर देती है। तनाव और चिन्ता से बचाने के लिए बच्चों को हमेशा अतिपीड़ा वाले वातावरण से मुक्त रखा जाए। उनके दिल में किसी तरह का सदमा नलगे, यह निहायत जरूरी है।
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बौद्धिक विकास के मापदण्ड
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