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होती हैं। व्यक्तित्व का केन्द्रीकरण एवं संवेगात्मक प्रभावों का सन्तुलन बौद्धिक विकास एवं उसकी परिपक्वता से भी सम्भावित है।
बुद्धि एक जन्मजात एवं स्वाभाविक शक्ति है। प्राचीन काल में विद्या या ज्ञान के आधार पर बुद्धि की परीक्षा ली जाती थी। जिसके पास जितना ज्ञान, वह उतना ही बुद्धिमान। मध्यकाल में शारीरिक संरचनाओं के आधार पर भी बुद्धिमत्ता की परीक्षा होती रही है। जैसे-'क्वचित् दंतर्भवेद् मूर्खः।' जबकि सच तो यह है कि बुद्धि का सम्बन्ध ऐसी किसी बनावट से नहीं है। यह शक्ति मनुष्य को स्वभावत: जन्म से ही प्राप्त होती है और धीरे-धीरे इसका विकास होता है। ____ व्यक्ति की मानसिक योग्यता उसकी आयु के आधार पर नहीं, वरन उसके विकास के आधार पर आँकी जाती है। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे की उम्र तो दस साल होती है किन्तु मानसिक उम्र उससे पाँच साल कम होती है या पाँच साल अधिक होती है। यदि पाँच वर्ष का बालक बुद्धि-परीक्षण के लिए निर्धारित प्रश्नों का उत्तर अपनी उम्र के मुताबिक देता है तो उसकी मानसिक उम्र भी पाँच साल कही जाएगी। नहीं तो कम या ज्यादा। पाँच वर्षका बालक यदि अपने से अधिक उम्र वालों के लिए निर्धारित प्रश्नों का जवाब भी देता है, तो वह लड़का कुशाग्र है, तीव्रबुद्धि सम्पन्न है। बच्चे की मानसिक उम्र जितनी अधिक होगी, उसकी बौद्धिक क्षमता उतनी ही समर्थ और सशक्त कहलाएगी। __बुद्धि-परीक्षण के लिए शाब्दिक एवं क्रियात्मक दोनों ही पद्धतियाँ हैं। शाब्दिक प्रणाली के अन्तर्गत बच्चों से प्रश्न पूछे जाते हैं। जैसे दो वर्ष की अवस्था के बालकों के लिए
तुम्हारी आँख कहाँ है? तुम्हारा नाम क्या है? तुम लड़की हो या लड़का? बालक को पेन-पेंसिल या पैसा दिखाकर पूछे कि यह क्या है?
तीन वर्ष की अवस्था के बालकों के लिए
एक जैसी दो सन्दूकों में कुछ सामान भर कर यह पूछे कि बताओ दोनों में किस सन्दूक का वजन ज्यादा है। लाल, पीला, हरा आदिरंगों की --- --- --------
कैसे करें व्यक्तित्व-विकास
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