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________________ है यदि उसकी प्राप्ति में थोड़ी-सी भी देर होती है तो वह तत्क्षण विद्रोह कर बैठता है। वह क्रोधसे तमतमा उठता है और आक्रामक तेवर अपना बैठता है। वह तिलमिलाकर हाथ-पैर पटकने लगता है, चीखने-चिंघाड़ने लगता है। बालक के इस संवेगात्मक व्यवहार में कई तीव्र प्रतिक्रियाएँ हो उठती हैं। जैसे-जैसे बालक की आयु में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसके संवेगों की उग्रता नरम होने लगती है। ___ बालकों के संवेगों में परिवर्तन भी इतना जल्दी हो उठता है मानो यह कोई छू-मन्तर का खेल हो। चूँकि बालक में छद्म, स्वार्थ आदि नहीं होते जो कि उसके संवेगों को स्थायित्व दिलाने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसीलिए परिस्थिति के अनुसार वे संवेग एक रूप से दूसरे रूप में बदलते रहते हैं। चूँकि बालकका अपने पर कोईआत्म-नियंत्रण नहीं होता, इसलिए उसके संवेगों की शारीरिक प्रतिक्रिया हो उठती है। आँखें तक लाल हो जाती हैं। आनन्द पैदा हुआ है, तो मुस्करा उठता है, हाथ पैर डुलाने लगता है, खुशी से उछलने-कूदने लगता है। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होने लगते हैं, परिस्थितियों को समझने लगते हैं। वातावरण के साथ उनका समायोजन-सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। फलस्वरूपवे उत्तेजित और उद्विग्न कम होने लगते हैं। यदिघर का वातावरण सन्तुलित, समायोजित और मधुर है तो बालक के संवेगात्मक व्यवहार, उत्तेजित होने के बजाए, विनम्र और सौहार्दपूर्ण होंगे। एक कुण्ठाग्रस्त या क्लेशमय वातावरण में जीने वाले परिवार, बालक के संवेगात्मक विकासको विपरीत दिशा में ले जाते हैं जिससे वह जिद्दी और बेचैन रहने लगता है। बालक में कुछ सामान्य संवेग जन्मजात होते हैं। आगे चलकर उन सामान्य संवेगों में भी विभागीकरण हो जाता है और एक संवेग से दूसरा और दूसरे से तीसरा संवेग उत्पन्न होता रहता है। बच्चे में सबसे पहले जिन संवेगों का उदय होता है, वे प्रेम, क्रोध और भय हैं। जन्म के तीन महीने तक केवल दो प्रकार की ही संवेगात्मक प्रतिक्रियाएँ होती हैं- पहला कष्ट नियंत्रण करें प्रतिकूल संवेगों पर - - - - - - - - - - - - - २७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003900
Book TitleKaise kare Vyaktitva Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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