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अभ्यास होता जाता है, तो बाहरी जड़ पदार्थों में भी आत्म-बुद्धि का आरोपण हो जाता है। आत्म-बुद्धि का आरोपण कर बैठने के कारण ही हम परायी चीजों पर अपनेपन की मोहर लगा देते हैं। इसीलिए तो हम कहते हैं यह मेरा है।' जबकि मेरा है नहीं। शरीर मेरा नहीं, परिवार वाले मेरे नहीं, संसार गेरा नहीं। मेरा तो केवल 'मैं है। 'मेरा' दो के बीच का सेतु है। 'मैं पूर्णता है। इसलिए मैं पूर्ण हूं, विशुद्ध हूं। मैं का पूर्ण और पावन हो जाना ही जीवन में समत्व की प्रतिष्ठा है। ___ शरीर तो खैर मरते दम तक भी साथ रहता है। परिवार वाले श्मशान तक साथ रहते हैं। पर संसार वाले तभी तक साथ देते हैं, जब तक अंटी में पैसा रहता है। इसके अलावा कोई भी हमारे साथ नहीं है। अपनत्व तो ममत्व और राग की वजह से है। जिनको हम अपना मानते हैं, वे ही दुःख देते हैं। जब इनका हमारे साथ बिछोह होता है तो हमें भी दुःख होता
वास्तव में जब मनुष्य संसार को, परिवार को अपना मान लेता है, तो उसके मन में इच्छाएं पैदा होती हैं। मनुष्य पर-पदार्थ में आत्मबुद्धि रखता है और उसे अपना मान लेता हैं, तो उसके मन में इच्छाएं उपजती हैं। इच्छाएं दुष्पूर हैं। फिर भी मन की गागर छलकती रहती है। एक इच्छा पूरी नहीं होती कि उससे पहले दूसरी इच्छाएं आकर खड़ी हो जाती हैं। उसीसे वह अन्तर-क्षेत्र में संघर्ष करता है, बाहर से जुड़ता है। अपने पुरुषार्थ और सारी जिन्दगी को उन इच्छाओं की आपूर्ति में खर्च कर देता है। फलतः उसकी ऊर्जा और आत्म
शक्ति बंट जाती है। अखण्ड भी खण्ड-खण्ड में बंटकर खंडित हो जाता है। मनुष्य की जितनी इच्छाएं होंगी, उसको अन्तर-शक्तियां उतनी ही खण्डित होती जायेंगी। ____इच्छा भिखमंगे की तो क्या 'सिकन्दर' की भी पूरी नहीं होती। यह तो मात्र एक छलावा है, छलनी में जल भरना है। एक बात पक्की है कि इच्छाएं बिखेरती हैं, जोड़ती नहीं।
यदि हम एक इंजन के साथ एक डिब्बा लगाएंगे, तो उस डिब्बे को इंजन की पूरी शक्ति मिलेगी। यदि एक इंजन के साथ सौ डिब्बे लगाएंगे, तो निश्चित ही इंजन की ऊर्जा सौ डिब्बों को खींचने के लिए अलग-अलग शक्ति देगी। चेतना की शक्ति भी इसी तरह से अलग-अलग खण्डित हो जाती है। जैसे देश का बंटवारा होता है, वैसे ही बंटवारा होता है अन्तर जगत का।
इस मामले में महावीर काफी खुलकर पेश हुए। उनका मनोविज्ञान बारिकी लिए है। उन्होंने इस बात को गहराई से छुआ। उन्होंने मनुष्य के अन्तरंगीय पहलुओं को जितना संसार और समाधि
-चन्द्रप्रभ
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