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ढलता है त्यों-त्यों वासना जवान होती जाती है। ज्यों-ज्यों सांझ ढलती जाती है, त्यों-त्यों उमस और लालिमा बढ़ती जाती है।
आदमी बूढ़ा हो जाता है। फिर भी स्त्री-आकर्षण के जेल खाने से छूट नहीं पाता।
मैने एक बार सर्वेक्षण करने की ठानी। कई बूढ़ों से बचकानी बातें भी की। परिणाम तो वही निकला जो मैने सोच रखा था। लोग धर्मिष्ट हैं, दान करते हैं, समाज में नाम है। उन्हें पूछो, तुम अहिंसक हो? छाती ठोककर बोलेगा हां! मैं अहिंसक हूं। आप फिर पूछो, क्या तुम झूठे हो? कहेगा नहीं। मैं ईमानदार हूं। पर किसी को पूछो तुम अपने सिर पर हाथ रखकर बोलो कि क्या तुम ब्रह्मचारी हो? वह लजा जाएगा, आंखें शरमा जाएगी। उसकी शर्मिंदी आंखें बहुत कुछ कह जाएंगी।
एक दिन मैं किसी प्रवचन-सभा में गया था। सभा में एक आचार्य ब्रह्मचर्य के तार छेड़ रहे थे। बूढ़े खचाखच भरे थे। अपने प्रवचन के बाद आचार्य महाराज ने लोगों को ब्रह्मचर्य-व्रत लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जिनकी उम्र साठ से ऊपर है, उन्हें तो ब्रह्मचर्य-व्रत ले ही लेना चाहिये। वे इन्तजारी करते रहे कि कोई बूढ़ा खड़ा हो और व्रत ले। पर एक भी बूढ़ा खड़ा न हुआ।
तो साठ से ऊपर हो जाने पर भी आदमी आकर्षण को क्षीण नहीं करता। वह आकर्षण को छोड़ते कतराएगा। यही कारण है कि एक बूढ़ा जितना रागी होगा, उतना एक बच्चा नहीं होगा।
दुनियाभर के व्रत लेने वाला भी ब्रह्मचर्य का व्रत नहीं ले पाएगा। पर जिसने ब्रह्मचर्य का नियम स्वीकार कर लिया, वह दुनिया का हर कोई व्रत ले सकता है। जो व्यक्ति कामवासना की आग को बुझा देता है, वह धन्य है। कारण, उसने आकर्षण की दीवारें नहीं तोड़ी हैं, अपितु नींव ही उखाड़ने की चेष्टा की है।
इसलिए एक बात तय है कि जिसने जीवन में ब्रह्मचर्य को साध लिया है, वह संसार के प्रति सदा उदासीन होगा। उदासीन होगा यानी उसका आसन ऊपर होगा संसार से, संसार की वृत्तियों से। ___ जैसे लोग कहते हैं कि संसार से भूख मिट जाये तो पाप ही मिट जायेगा, क्योंकि आदमी पाप करता है पेट के लिए, पेट को पालने के लिए। वैसे ही मैं कहूंगा कि आदमी संसार में रहता है आकर्षण के कारण। अगर आकर्षण टूट जाये, तो संसार ही टूट जायेगा। संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रभ
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